Thursday, December 28, 2017

शिक्षा प्रशिक्षण और नौकरी : प्रगति की सीढ़ियां

शिक्षा प्रशिक्षण और नौकरी :  प्रगति की सीढ़ियां 



कम्पनियाँ कहती हैं - "सक्षम लोग नहीं मिलते"  लोग कहते हैं "रोजगार नहीं मिलता". सरकार कहती है "हमने इतने सारे रोजगार मार्गदर्शन केंद्र खोले हैं". किसकी बात में दम है? खैर इन सबको छोड़ कर उस युवा की तरफ देखते हैं जिसको आज सब तरफ अन्धकार नजर आ रहा है. उस बालक को देखो जिको नहीं पता की वो अपनी जिंदगी में क्या कर पायेगा. उसको क्या कोई ऐसी नौकरी मिल पाएगी जिसमे वो पूरी जिंगदी अपने सपनो का काम कर सके? क्या वो कोई ऐसा काम कर पायेगा जिससे उसके सपने पुरे हों और देश और समाज को उस पर फक्र हो? हर युवा बेहतरीन काम करना चाहता है लेकिन क्या करे? कैसे आगे बढे? जो थोड़ा सा समय उसको स्कुल - कॉलेज के लिए मिलता है वो हड़ताल, आवारगी आदि के चपेट में चला जाता है. ये तो समाज की जिम्मेदारी है की उसको सक्षम बनने में मदद करें. कॉलेज को नहीं पता की उसको क्या सिखाएं? पारिवारिक आर्थिक संकट के कारण हर व्यक्ति महँगी शिक्षण संस्थान में नहीं जा पाता है. 


मैं जब छोटा था तब मेरे कुछ साथी कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण पढ़ाई नहीं कर पाए - और उन्होंने अपनी मज़बूरी पर अफ़सोस जताया. उस समय में कुछ शिक्षण संसथान शाम को संचालित होते थे ताकि नौकरी पेशा करने वाले लोग भी पढ़ाई कर सकें. उस समय की जरुरत को देखते हुए वो पर्याप्त थे. वक्त गुजरता गया पर न तो लोगो की समस्याएँ बदली न संस्थाओं का काम करने का तरीका

हाल ही में मैं रेल से यात्रा कर रहा था. मेरी मुलाकात मीधिलेश गौड़ नामक एक युवक से हुई. उसने मुझे बताया की पारिवारिक परिस्थिति के कारण उसको १६ साल की उम्र में नौकरी करनी पड़ी. वो फुलेरा का रहने वाला है लेकिन नौकरी करने के लिए बंबई गया. वहां पर वो एक डायमंड कम्पनी में कटिंग पॉलिशिंग का काम करने लगा. लेकिन उसको बड़ा अफ़सोस हुआ की उसकी पढ़ाई छूट गयी थी. उसकी बड़ी इच्छा थी की वो भी अपनी पढ़ाई पूरी करे और शानदार नौकरी हासिल करे. बहुत हिम्मत जुटा कर उसने अपनी नौकरी छोड़ दी और ऐसी नौकरी ढूंढने लगा जिसके साथ उसकी पढ़ाई हो सके. उसने जयपुर आकर के काम पैसे में काम करना शुरू किया और साथ में एक आईटीआई में भी प्रवेश ले लिया. उसने अब जो नौकरी की वहां पर उसको रविवार को भी जाना पड़ता था लेकिन उसको उसके बदले में एक दिन छूती मिल जाती थी. उसने सप्ताह में एक दिन जा कर के पढ़ाई शुरू की लेकिन उसको बड़ा अफ़सोस हुआ जब वो परीक्षा में कुछ विषयों में फ़ैल हो गया. उसने अपने मालिक से समय बदलने के लिए अनुरोध किया और फिर उसका समय दोपहर का हो गया. अब वो रोज आईटीआई जाता है वहां से ११ बजे अपने काम के लिए निकल जाता है और नौकरी करता है. आज वो पढ़ाई भी करता है और नौकरी भी करता है. उसको उम्मीद है की उसकी आईटीआई डिप्लोमा जल्दी ही पूरी हो जायेगी फिर वो भी एक अच्छी नौकरी करने लग जाएगा. 

श्री गौड़ के जैसे आज हजारों विद्यार्थियों के सामने अपने भविष्य को संवारने का एक ही विकल्प है - शिक्षा - लेकिन इस क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं ने क्या किया? जब मैं अपने बचपन में सांध्यकालीन शिक्षण संस्थान देख सकता था - तो आज क्यों नहीं? आज फिर से ऐसे शिक्षण संस्थान चाहिए जो नौकरी करने वाले विद्यार्थिओं को ध्यान में रख कर इस प्रकार अपना समय रखें ताकि वो विद्यार्थी अपना भविष्य संवार सके. आज तो तकनीक से सब कुछ संभव है. तो क्यों नहीं ऐसे माध्यम शुरू किये जाएँ ताकि नौकरी के बाद विद्यार्थी अपने सुविधानुसार समय पर अपने मोबाइल पर लेक्चर सुन सके या अपनी सुविधा के अनुसार व्याख्याताओं से संपर्क कर के उनसे ज्ञान प्राप्त कर सके. 

शिक्षण संस्थाओं को अपनी पहली प्राथमिकता किसी सरकारी फरमान की अनुपालना नहीं बल्कि उन विद्यार्थियों को सक्षम बनाना रखनी चाहिए जो कुछ सीख कर अपनी जिंदगी को बदलना चाहते हैं. शिक्षण संस्थाओं का आदर्श वो "स्टैंडर्ड्स" नहीं है जो किसी विदेशी या देश की शिक्षण संस्थान ने बना दिया है - परन्तु उनके आदर्श तो  आस पास के शिक्षातुर विधार्थियों को प्रशिक्षित करने के लिए जी जान से काम करने वाले लोग हैं. आज भी हमारे देश में अनेक लोग अवसरों की कमी के कारण अपनी किस्मत को दोष दे कर मौन रह जाते हैं. अनेक प्रतिभावान विद्यार्थी अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं. अद्भुत प्रतिभा दब जाती है. कई विद्यार्थियों को उनका मनचाहा रास्ता ही नहीं मिल पाटा है. आज भी अनेक ऐसे लोग हैं जो कुछ करना चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते हैं. 

इग्नू जैसे अनेक खुला विश्वविद्यालओं की स्थापना सरकार ने इन्ही उद्देश्यों से की थी - लेकिन अफ़सोस ये की ज्यादातर संस्थान उस विद्यार्थी की पीड़ा को नहीं समझ पा रहे हैं जो सीखना चाहते हैं लेकिन नौकरी करना उनकी मज़बूरी है. ये शिक्षण संस्थान अपने "नियम-आधारित" व्यवस्थाओं के तहत काम करते हैं और भूल जाते हैं की उनका असली मकसद विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर उसकी प्रतिभा को निखारना है न की नियमों की दुहाई देना है. शिक्षण संस्थाओं को शिक्षण प्रणाली, कक्षा के समय, शिक्षण के प्रारूप में लचीलापन लाना चाहिए लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाते हैं. जो काम उनको करना है वो वे नहीं कर पा रहे हैं. 

आज कई युवा सामने आये हैं जिन्होंने अपने दम पर ऐसे एप्प बना लिए हैं जीने विद्यार्थियों को अपने आप पढ़ाई करने का मौका मिल सके. आज उन युवाओं ने देश के खुला विश्वविद्यालयों को एक चुनौती दी है. उन्होंने ये साबित कर दिया है की बिना बजट के भी वो लोग वो काम कर रहे हैं जिसको करने के लिए देश में करोड़ों रूपये का बजट खुला विश्वविद्यालयों को आवंटित किया जाता है. 

देश में अनेक ऐसे स्वय सेवी संगठन सामने आ रहे हैं जो स्वेच्छा से कॅरिअर गाइडेंस प्रोग्राम, युवा प्रशिक्षण कार्यक्रम और इस प्रकार के अन्य कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं. जो काम देश के रोजगार प्रशिक्षण संस्थाओं और रोजगार ब्यूरो को करने हैं वो काम आज हमारे देश के अनेक स्वयं सेवी संगठन कर रहे हैं. 

देश के युवाओं को प्रशिक्षित करना इस देश की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए - क्योंकि अगर आज प्रतिभावान विद्यार्थी बेरोजगार हैं तो वो देश और समाज के लिए कलंक की बात है. प्रशिक्षित और सक्षम युवा अपने देश, अपने समाज, अपने क्षेत्र के विकास के लिए सबसे बड़ी सौगात है.

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