Thursday, December 28, 2017

सैलानियों के लिए अद्भुत है लुप्त होती सांस्कृतिक विरासत

सैलानियों के लिए अद्भुत है लुप्त होती सांस्कृतिक विरासत 

राजस्थान नाम आते ही एक खूबसूरत इतिहास, संस्कृति, और वैभव का परिदृश्य हर व्यक्ति के आंखों के सामने होता है. जो भी राजस्थान में नहीं हैं वो एक बार तो राजस्थान आना ही चाहता है.  प्रदेश में अद्भुत सांस्कृतिक वैबव है. यहाँ के संगीत, चित्रकला, हस्तशिल्प, और सुन्दर गहनों की पूरी दुनिया कद्रदान है. प्रदेश में अद्भुत कलाकार हैं जो अपने हुनर से जादू कर डालते हैं. उनकी अद्भुत कला की पूरी दुनिया दीवानी है. इस खूबसूरत प्रदेश में सालाना १५-२० लाख विदेशी पर्यटकों का आना आम बात है. विदेशी पर्यटकों के अलावा करीब ३.५ करोड़ भारतीय भी इस प्रदेश को देखने के लिए हर साल आते हैं.

पर्यटकों को क्या चाहिए - कुछ नया पन, कुछ अद्भुत, कुछ ऐसा अनुभव जो उनको फिर से जीवन की ताजगी से भर दे. राजस्थान में विविधता और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत संगम है. कोई यहां कुम्भलगढ़ का किला देखने आता है तो कोई यहाँ जयपुर का कठपुतली शो देखने आता है. कोई यहाँ बीकानेर और शेखावाटी की हवेलियां देखने आता है तो कोई माऊंट आबू की पहाड़ियों का आनंद लेने आता है. प्रदेश में पर्यटकों के लिए इतिहासिक इमारतों की कमी नहीं हैं.

एक समालोचक की दृस्टि से देखें तो हम ये पाते हैं की इस प्रदेश की अद्भुत सांस्कृतिक धरोहर को उस तरह से प्रस्तुत नहीं किया गया है जिस तरह से किया जाना चाहिए. आज भी अनेक विदेशी ये ढूंढ़ते रहते हैं की बीकानेर के धोरों पर ऊंटों की सवारी करने के लिए किससे संपर्क करें? आज भी अनेक विदेशी लोगों को राजस्थान के गावों में रहने और यहाँ की गावों की संस्कृति को सीखने की चाह यहाँ खींच लाती है लेकिन उनको इस हेतु आगे किससे संपर्क करें ये नहीं पता. आज भी राजस्थान के अद्भुत परम्परागत सांस्कृतिक व्यवस्थाओं और रीति रिवाजों को बताने वाला कोई जीवंत संग्रहालय नहीं है. विदेशी पर्यटक यहाँ की संस्कृति से सीखना चाहता है और इस सांस्कृतिक विरासत को अपनी यादों में ले जाना चाहता है लेकिन इस हेतु कोई व्यवस्थित प्रयास नहीं हैं.

पर्यटकों को राजस्थान का कमजोर प्रशासन तंत्र बहुत अखरता है. उनको अनेक जगह के लिए तो हवाई यात्रा नहीं मिलती है. कई जगह पर पर्यटक सुचना केंद्र नहीं मिलते हैं. वे यहाँ के पर्यटन स्थलों की खस्ताहाल व्यवस्था को देख के क्षुब्ध हो जाते हैं. पर्यटकों को स्वागत करने के लिए तो बड़े सारे बोर्ड मिल जाते हैं लेकिन उनकी सुविधा के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं मिलता है. वे राजस्थान के परम्परागत उत्पाद और हस्त-शिल्प खरीदना कहते हैं लेकिन उनको इस हेतु उचित बाजार नहीं मिल पाते हैं.

राजस्थान सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं बना रहीं हैं. जरुरत है की राजस्थान में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए. जरुरत है की रेगिस्तान के जहाज ऊंट को संरक्षित करने और ऊंट पालने वालों को सहारा देने के लिए प्रयास हों, जरुरत है की लोक-कलाकारों और हस्त-शिल्पकारों को मदद हो. जरुरत है की परम्परागत कलाओं को सहारा दिया जाए. जरुरत है की बड़े शहरों को छोड़ कर अन्य छोटे शहरों की अद्भुत विरासत को भी सही तरह से प्रस्तुत की जाए, जरुरत है की खस्ताहाल सड़कों और यातायात व्यवस्था को सुधारा जाए. लेकिन राजस्थान सरकार के प्रयास कुछ और हैं. सरकार का ध्यान जयपुर के पास में गोल्फ कोर्स बनाने, सांभर लेक को पर्यटन के लिए तैयार करने, जयपुर में रात्रि पर्यटन और ग्रीष्मकालीन पर्यटन को बढ़ावा देने आदि पर है. सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जयपुर और कुछ अन्य शहरों पर ज्यादा ध्यान दे रही है.

पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ ये भी ध्यान देना जरुरी  है की पर्यटक एक सकारात्मक याद ले कर लौटें और  पर्यटन के कारण हमारी धरोहर को कोई नुक्सान न हो. पर्यटन से अनेक लोगों को रोजगार मिलता है और अनेक लोगों को आर्थिक लाभ मिलता है. लेकिन पर्यटकों को हमें हमारी गौरव-मई संस्कृति का नजारा दिखाना है और ये प्रयास करने हैं की वे जब लोट कर जाएँ तो हमारी विरासत के बारे में तारीफ कर सकें. ज्यादातर पर्यटक राजस्थान की खस्ताहाल प्रशाशनिक व्यवस्था को देख कर एक नकारात्मक सन्देश के साथ लौटते हैं. एक पर्यटक मुझे बोलै की यहाँ की सरकार जितना खर्च कमरतोड़ स्पीड-ब्रेकर बनाने पर करती है उतने में तो कैमरे लगाए जा सकते हैं जिससे यातायात नियम तोड़ने वाले पर जुर्माना किया जा सके. एक पर्यटक राजस्थान के लोगों से बात कर के आम लोगों की समझ देख के अभिभूत हो गया लेकिन प्रशाशन की कमजोर व्यवस्था देख कर हैरान रह गया.

कुछ लोग राजस्थान को अंधविश्वासों  और अनपढ़ लोगों का प्रदेश के रूप में स्थापित करते हैं.  उन लोगों का प्रतिकार करना जरुरी है. अन्धविश्वार पूरी दुनिया में है - कहाँ नहीं है. अगर आप राजस्थान में अंधविश्वास देख रहें हैं तो आप हैरान रह जाएंगे ये सुन कर की अमेरिका में होटल में १३ या ११३ नंबर के कमरे ही नहीं मिलेंगे. चीन में लाफिंग बुद्धा , ड्रेगन, और फेंग शुई जैसे कितने ही अंधविश्वास हैं, यूरोप में कोई सीढ़ी के नीचे से नहीं गुजरता, काली बिल्ली को वे अशुभ मानते हैं आदि आदि. पूरी दुनिया आज किसी न किसी अन्धविश्वास से जकड़ी है. अगर राजस्तान के अंधविश्वास आपको ज्यादा लग रहे हैं तो गौर करें की कई विस्वास तो पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार पर स्थापित है तथा उनसे लोगों को फायदा मिलता है - जैसे लोग तुलसी को अपने घर के आंगन में स्थापित करते हैं और उसकी पूजा करते हैं - तो इससे उनको फायदा मिलता है आदि आदि.

राजस्थान के अद्भुत सांस्कृतिक वैभव और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण करने और प्रचारित करने की जरुरत है. हम सबको इस हेतु पहल करनी पड़ेगी. जो विरासत हम को मिली - उसे अगली पीढ़ी तक ले जाना है. नयी पीढ़ी में इस के प्रति उचित सम्मान और आदर का भाव स्थापित करना है. राजस्तान सिर्फ महलों और हवेलियों का प्रदेश ही नहीं ये उन लोगों का प्रदेश है जो पानी की कीमत जानते हैं, जो रिश्तों का आदर करना जानते हैं, जो इस प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करना जानते हैं. यहाँ कला और संस्कृति जड़ों में बसी हैं और हर मेला, त्यौहार और आयोजन एक सार्थक प्रयोजन के साथ आयोजित किया जाता है. पर्यटन से भी ज्यादा जरुरी है की पर्यटक हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक सकारात्मक पक्ष समझ कर लोटे. अगर हम ही इसे नहीं समझेंगे तो कोई विदेशी  कैसे इसे सर-आँखों पर बिठायेगा. कस्तूरी मृग की तरह अपनी अद्भुत विरासत को पहचानना आज हर राजस्थानी के लिए एक चुनौती है

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