Thursday, December 28, 2017

ब्रिक्स के तीर से कई शिकार

ब्रिक्स के तीर से कई शिकार

चीन ने पहले तिब्बत पर आक्रमण किया. १९५० से १९५९ तक तिब्बत सरकार अपने दम पर लड़ती रही और आखिर चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया. भारत को उस समय तिब्बत की मदद करनी चाहिए थी लेकिन उस समय हम चीन को समझ नहीं पाए थे और हिन्द- चीन भाई भाई का नारा लगा रहे थे. आज चीन उसी तिब्बत की भूमि से भारत में घुसना चाहता है और भारत की ९०००० किलोमीटर की भूमि पर अपना हक दिखाता है. हाल ही मैं उसने दोकलाम में अपना कब्ज़ा बढ़ाते हुए भूटान पर कब्जे का मानस बना लिया था और भूटान - भारत के अनुबंध के तहत भूटान सरकार ने भारत से सहायता मांगी. भारत ने इस बार वो गलती नहीं की जो १९५९ में की थी. इस बार मुँह तोड़ कर जवाब दिया. ७० दिन से भी ज्यादा समय तक चीन की सेना के सामने भारत की सेना डटी रही. आगे ब्रिक्स की मीटिंग आ रही थी और चीन को दिख रहा था की ब्रिक्स मीटिंग में भारत की मदद उसको चाहिए ही चाहिए. मजबूर हो कर उस लालची देश को अपनी सेना को पीछे खींचना पड़ा. भारत ने चीन को एक सन्देश दे दिया है. आगे अगर भारत तिब्बत को अंतरास्ट्रीय राजनीति के द्वारा  उसका खोया राज्य दिला सके तो वाकई ये एक कूटनीतिक विजय होगी.

हाल ही मैं चीन में ब्रिक्स की मीटिंग में भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस मीटिंग से कई मकसद हासिल किये. ब्रिक्स पांच देशों का गठबंधन है - ये पांच देश हैं - रूस, चीन, ब्राज़ील, भारत व् दक्षिण अफ्रीका. ब्रिक्स की शुरुआत २००९ में हुई. हालांकि २००६ में इसके लिए बातचीत शुरू हो गयी थी. ब्रिक्स में आज अनेक देश सदस्य बनने के लिए लालायित हैं. जो भी देश अमेरिका की दादागिरी  से दुखी हैं वे ब्रिक्स के दरवाजे खटखटा रहे हैं. आप ाणुआँ लगा सकते हैं की मेक्सिको, ईरान, सीरिया आदि देश ब्रिक्स के सदस्य बनने के सपने देख रहे हैं. इतने अल्प समय में इतनी धाक जमाने के पीछे क्या कारण हैं? ब्रिक्स देशों में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है - लगभग दुनिया की आधी जनसंख्या. ब्रिक्स देशों के पास आज उनकी स्वयं की अंतरास्ट्रीय बैंक, और अंतरास्ट्रीय कोष है - जो एक तरह से अमेरिका की शह पर चलने वाले अंतरास्ट्रीय मुद्रा कोष का एक विकल्प है. ब्रिक्स की ये ताकत आज अमेरिका के लिए एक खतरा बन कर उभर रही है. आज ब्रिक्क्स के देश एक नयी मुद्रा शुरू करने की वकालत कर रहे हैं . वे आपस में संवाद के लिए ब्रिक्स केबल बिछाने वाले हैं ताकि अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी की निगाहों से बच सकें. वे अपने बीच में आर्थिक लेनदेन के लिए एक नया तंत्र स्थापित करने वाले हैं जो स्विफ्ट तंत्र से अलग होगा. इस प्रकार से वे पूरी दुनिये के सामने एक अलग मिसाल स्थापित करेंगे. ब्रिक्स देश एक दूसरे के साथ व्यापार में कस्टम ड्यूटी (आयत कर) को कम करने की योजना बनाने में लगे हैं. ब्रिक्स देश आपस में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नए अनुबंध करने वाले हैं. ये सब बातें अमेरिका को चिंतित कर देंगी.

भारत का ब्रिक्स में बहुत योगदान हैं. ब्रिक्क्स का चौथा और आठवां शिखर सम्मलेन भारत में ही हुआ था. ब्रिक्क्स में भारत के प्रयासों से ही दक्षिण अफ्रीका को प्रवेश मिला था और २०१० में वो पांचवा देश बना था (पहले ब्रिक्स में चार ही देश थे  - चीन, भारत, ब्राज़ील, और रूस). भारत की चीन को छोड़ कर सब देशों से दोस्ती है अतः भारत इस मंच पर अपनी बात को बड़ी मजबूती से प्रस्तुत कर सकता है. ब्राजील और रूस चीन की दादागिरी को कम करने के लिए भी भारत की तरफ उम्मीद से देखते हैं. चीन शुरू से ब्रिक्स पर अपना कब्ज़ा स्थापित करना चाहता था लेकिन भारत की रणनीति के कारण आज ब्रिक्स पूरी तरह से भारत के साथ है. ये बात इस ब्रिक्स सम्मलेन में स्पस्ट हो गयी की भारत की हर बात को ब्रिक्स के देश (चीन को छोड़ कर) बहुत तबज्जु दे रहे हैं. जहाँ चीन थाईलैंड को ब्रिक्स में घुसाना चाहता है वहीँ भारत अपने मित्र देशों जैसे ईरान आदि को इस समूह में लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं.

ब्रिक्स के सभी देश ये मान रहे हैं की ब्रिक्स की बढ़ती ताकत से अमेरिका को चौंका दिया है. रूस और चीन दोनों ही अमेरिका को सबक सिखाने के कोई मोके नहीं गवाना चाहते अतः ये दोनों देश ब्रिक्स को मजबूत बनाने में अपना स्वार्थ देख रहे हैं. इन दोनों देशों की चाहत है की ब्रिक्स में किसी प्रकार की कोई कलह नजर ना आये ताकि अमेरिका पर वे अपना दबदबा दिखा सकें. भारत इन दोनों देशों की इस कमजोर नस को समझता है अतः ब्रिक्स में बिलकुल नापतोल कर अपनी मांग रखता है जिसको हर देश को मानना ही पड़ता है. भारत के हर व्यक्तव्य में तर्क होता है और वो पूरी दुनिया के हितों को ध्यान में रख कर कही गयी होती है.

चीन सिर्फ और सिर्फ अपने व्यवस्यिक हितों को ही ध्यान में रखता है. आज चीन की जीडीपी में विकास की दर सिर्फ ६.५ % रह गयी है जो भारत की ७.२% से कम है. चीन और भारत दोनों देश मिल कर पूरी दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा तेज रफ़्तार से बढ़ता बाजार हैं. चीन भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए कुछ भी कर सकता है. चीन यूरोप, मध्य एशिया, और अफ्रीका में अपने सामान को निर्यात करने के लिए लगातार अवसर धुंध रहा है और इसी लिए वो भी ब्रिक्स में इन क्षेत्रों के देशों को शामिल करना चाहता है.  चीन के लिए उसके व्यावसायिक हित सर्वोपरि हैं. अतः भारत ने पकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों के खिलाफ घोषणा को ब्रिक्स सम्मलेन में प्राथमिकता दी. चीन को न चाहते हुए भी इसका समर्थन करना पड़ा. एक तरह से ये भारत की बड़ी जीत थी.

चीन ब्रिक्स सम्मलेन के माध्यम से सदस्य देशों के बीच में मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नए अनुबंध करना चाहता है - जिस पर भारत का दृश्टिकोण स्पस्ट है - भारत चीन की मंशा को जानता है लेकिन भारत की दृष्टि दूरदर्शी है अतः भारत ने ब्रिक्स सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय संधियों पर बल दिया है. भारत की इस नीति से भी चीन झल्ला गया है - क्योंकि इस प्रकार उसको भारत की रणनीतिक सफलता नजर आ रही है. भारत जानता था की ब्रिक्स के इस मंच से भारत को बहुत बड़े लक्ष्य हासिल करने हैं अतः वो भी इन्जार कर रहा है. अंतरास्ट्रीय मंच पर भारत की सक्रीय राजनितिक पहल का एक नया युग शुरू हो चूका है. एक समय में भारत सिर्फ रूस या अमेरिका का पिछलगू हुआ करता था - आज भारत विश्व में अपनी अलग पहचान स्थापित करना चाहता है. वो दिन दूर नहीं जब भारत भी अमेरिका की तरह एक महाशक्ति बन जाएगा.

ब्रिक्स मीटिंग के दबाव में आ कर हो सकता है हमारे देश को  ब्रिक्स देशों के साथ मुक्त व्यापार का अनुबंध मानना पड़े लेकिन आज हमारे देश में लोगों में जागरूकता बढ़ रही है और स्वदेशी की लहार फिर से जाग रही है. उम्मीद करते हैं की आने वाले समय में चीन के सपने साकार नहीं होंगे. याद रखें की चीन भारत में अपने सामान को बेचने के लिए कुछ भी कर सकता है - और आज आप हम जैसे लोगों को चीन में बने सामान का बहिष्कार कर के चीन की चालाकी का जवाब देना है. हम सबके प्रयासों से चीन सफल हो कर भी असफल हो जाएगा और भारत अंतरास्ट्रीय मंचों पर अपनी ताकत बढ़ाता जाएगा.

चीन आज नेपाल, पाकिस्तान, और हमारे सभी पडोसी देशों को भरपूर प्रलोभन दे रहा है. वो पाकिस्तान को पूरी तरह से अपनी कठपुतली बना चूका है. लेकिन भारत ने भी ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, रूस, और आसियान देशों के साथ मजबूत सम्बन्ध स्थापित कर के उसको ये सन्देश दे दिया है की सच्चाई के सहारे भी अंतरास्ट्रीय रणनीति में कदम बढ़ाये जा सकते हैं - आखिर  गलत तो गलत ही रहेगा. चीन की नीति का आधार सिर्फ उसकी आर्थिक ताकत  है जो उस क्षण टूट जायेगी जब भारत का बाजार उसके हाथ से चला जाएगा. भारत की नीतियों का आधार उसकी नीतियां और मूल्य हैं.


आइये हम सब मिल कर दुआ करें की तिब्बत के लोगों को उनका खोया हुआ राज्य वापिस मिल जाए. आइये हम सब लोग ये दुआ करें की चीन की कमजोर होती आर्थिक हालत को सुधारने में हम लोग कोई मदद न करें और मजबूर हो कर चीन को पाकिस्तान की मदद करने के प्रोजेक्ट को रकना पड़े. ध्यान रहे चीन पाकिस्तान की आर्थिक मदद कर रहा है और हम अगर चीन को कमजोर कर देंगे तो उसको मजबूर हो कर हाथ खींचने पड़ेगे.

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