Thursday, December 28, 2017

क्या करें परमाणु हथियारों के खिलाफ ?

क्या करें  परमाणु हथियारों के खिलाफ ? 

क्या आप जानते हैं की दुनिया में गरीबी, अशिक्षा, और बेरोजगारी को मिटाने के लिए जितने साधन चाहिए  - वो मानवता को समाप्त करने के लिए काम आ रहे हैं. क्या आपने 'लिटिल बॉय' और 'फैट मैन' का नाम सुना है? क्या आपने मेनहट्टन प्रोजेक्ट का नाम सुना है? क्या अपने 'ट्रिनिटी' का नाम सुना है? क्या आपने 'एनोला गे' और 'बॉकस्कार' नामक कुख्यात लड़ाकू हवाई-जहाजों का नाम सुना है? क्या आपने हिरोशिमा और नाकासाकि का नाम सुना है जहाँ पर हजारों निर्दोष लोगों को नेस्ताबूद कर दिया गया था? 

६ अगस्त और ९ अगस्त इंसानी सभ्यता के लिए सबसे ज्यादा दुखद यादें ले कर आते हैं -वो है हिरोशिमा और नागासाकी की. इंसान ने जो भी आविष्कार किये हैं उनमे सबसे ज्यादा घातक है - परमाणु बम्ब. जर्मनी के वैज्ञानिकों ने इन खतरनाक हथियारों का विचारईजाद किया और फिर क्या था - अमेरिका ने इन हथियारों को बना डाला और फिर द्वितीय विश्व युद्ध के समय इंग्लैंड और कनाडा से मशविरा करने के बाद इनका इस्तेमाल भी कर डाला. १९३९ से १९४४ के बीच अमेरिका ने २ बिलियन डॉलर खर्च कर लोगों की मौत का सामान बनाया.  लाखों निर्दोष लोगों को नेस्तनाबूद कर दिया गया. इससे ज्यादा दुखद और घृणित कृत्य नहीं हो सकता. कोई भी व्यक्ति लाखों निर्दोष लोगों की इस प्रकार हत्या का समर्थन नहीं कर सकता.  मानवीय सभ्यता ने इससे सबक नहीं सीखा है. परमाणु हथियारों का जखीरा बढ़ता ही जा रहा है. आज भी कोई न कोई हैवान इनके इस्तेमाल की धमकी दे रहा है - जो भी इनका इस्तेमाल करेगा वो इंसानियत का दुश्मन होगा. हिरोशिमा और नागासाकी की त्रासदियों के बाद शांतिप्रिय लोगों ने परमाणु हथियारों के खिलाफ आवाज उठायी. लेकिन क्या हुआ? आज तक अमेरिका ने अकेले ५.५ ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का खर्च सिर्फ परमाणु हथियारों पर किया है. अमेरिका हर साल ६० बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च परमाणु हथियारों पर कर रहा है. वो पूरी दुनिया को इस प्रकार विनाश की तरफ ले जा रहा है. उसके बाद रूस, चीन, फ़्रांस आदि देश हैं जो परमाणु हथियारों पर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं. अफ़सोस तो इस बात का है की कई गरीब देश भी इस होड़ में लग गए हैं. अमेरिका का तो ये धंधा है - वो तो अन्य देशों को हथियार बेचने के लिए ये हथकंडे अपनाता है लेकिन  उन गरीब लोगों का क्या होगा जिनकी सरकारें उनकी जरूरतों को ताक पर रख कर परमाणु हथियार बनाने के काम में लग गयी हैं. 
२४  जनवरी १९४९ को यूनाइटेड नेशंस एक प्रस्ताव पारित कर के परमाणु हथियारों का विरोध व्यक्त करता है. तो क्या हुआ? अगस्त  १९४९ में रूस, १९५२ में इंग्लैंड ने परमाणु हथियारों का परिक्षण किया और १९५२ में अमेरिका ने हइड्रोजन बम्ब का परिक्षण कर डाला. १९५५ में रुसेल और आइंस्टाइन ने पूरी दुनिया से परमाणु हथियार बंद करने के लिए आह्वान किया. १९५८ में इंग्लैंड में परमाणु हथियारों के खिलाफ आंदोलन तेज हुआ. जन आन्दोलनों के कारण अंटार्कटिका पर परमाणु बम्ब न प्रयोग करने का प्रस्ताव पारित हुआ. पर विक्सित देश तो अपने रास्ते पर चलते रहे. फ़्रांस ने १९६० में परमाणु बम्ब का परीक्षण किया तो रूस ने १९६१ में दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु बम्ब बना डाला. विकसित देशों में सत्ता में जो भी आया उसने परमाणु बम्ब बनाये. जनता बिचारि परमाणु बम्ब के खिलाफ लड़ाई लड़ती रही. जनता की मांग के कारण ५ अगस्त १९६३ को एक समझौता किया गया जिसमे परमाणु बम्ब का अंतरिक्ष में इस्तेमाल न करने की बात कही गयी. लेकिन विकसित देश उसी तरह परमाणु बम्ब पर खर्च करते रहे. १९६४ में चीन ने परमाणु बम्ब का परिक्षण  किया. 

१९६७ में लेटिन अमेरिका के देशों ने पहल करते हुए ये फैसला किया की वो परमाणु बम्ब का इस्तेमाल नहीं करेंगे. १ जुलाई १९६८ को एनपीटी लागू हुई जिसमे ये प्रावधान है की जिन देशों के पास परमाणु बम्ब नहीं है वो अब उनको हासिल नहीं करेंगे और जिनके पास हैं वो उनको काम करेंगे. २४ सितबंर १९९६ को कम्प्रेहैन्सिव नुक्लेअर टेस्ट बेन ट्रीटी नामक संधि लागू की गयी.  भारत ने इन  पर हस्ताक्षर नहीं किया है क्योंकि इस संधियों के  बाद भी चीन जैसे विकसित देशों के पास परमाणु बम्ब बने रहेंगे. 

ये सच है की नुक्लिएर हथियारों को समाप्त करना इंसानियत के लिए एक बड़ी जीत होगी. २७ अक्टूबर २०१६ को यूनाइटेड नेशंस की जनरल असेंबली की मीटिंग में १२३ देशों ने परमाणु हथियारों को समाप्त करने के लिए एक कॉनफेरेन्स बुलाने के लिए सहमति व्यक्त की, हालांकि ३८ देशों ने इसका विरोध भी किया. २७ मार्च से ७  जुलाई २०१७ तक चली मंत्रणा के बाद यूनाइटेड नेशंस ने परमाणु हथियारों को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया. 

 भारत ने परमाणु बम्ब का परिक्षण मई १९७४ और १९९८ में किया. पाकिस्तान ने भी मई १९९८ में परमाणु बम्ब का परीक्षण किया. भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे देशों को इस होड़ में शामिल होने से बहुत नुक्सान हुआ है - ये जनता के पैसे का उन कार्यों में इस्तेमाल है जो जनता को लाभान्वित नहीं कर सकते. लेकिन कई देश हैं जहाँ पर जन आंदोलन प्रभावकारी साबित हुए और सरकारों को मजबूर हो कर परमाणु हथियारों के खिलाफ कदम उठाने पड़े. आज अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और नूज़ीलैण्ड पूरी तरह से परमाणु हथियार मुक्त प्रदेश हो गए हैं. जहाँ जहाँ पर हथियारों की होड़ कम हो रही है वहां वहां पर विकास परिलक्षित हो रहा है. जो देश हथियारों की होड़ में उलझ रहे हैं वहां पर बर्बादी के बादल मंडरा रहे हैं. 

ये सच है की विकसित देशों के राष्ट्राध्यक्ष आम जनता की आवाज को दरकिनार कर हथियारों की होड़ फैलाने में लगे हैं. आम जनता हर जगह अमन पसंद है और ये चाहती है की परमाणु हथियारों की होड़ बंद हो. १२ जून १९८२ को दस लाख लोगों ने न्यू यॉर्क में रैली निकाली और पूरी दुनिया के लोगों का प्रतिनिधित्व किया. लेकिन सत्ता के मदहोश लोगों को आम लोगों की आवाज से कोई मतलब नहीं होता है. १९८५ में परमाणु हथियारों के विरोध में आवाज उठाने वाले "रैंबो वारियर" नामक जहाज को फ़्रांस सरकार ने तबाह कर दिया. लेकिन उसी साल परमाणु हथियारों के विरोध में आवाज उठाने वाले भौतिक शास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार मिला. 

९ अक्टूबर २००६ को उत्तरी कोरिया ने पूरी दुनिया को परमाणु बम्ब का परिक्षण कर के चौंका दिया. उस दिन से वो दुनिया के लिए एक सिरदर्द बन गया है. लेकिन आज अधिकांश विश्व परमाणु हथियारों के खिलाफ खड़ा है. नॉर्वे ने २०१३ में एक कांफ्रेंस की जिसमे १२८ देशों ने परमाणु हथियारों के खिलाफ आवाज उठाई. फिर २०१४ में मेक्सिको और विएन्ना में इसी तरह की कांफ्रेंस हुई. एक तरफ कुछ मुट्ठी भर राष्ट्राध्यक्ष हैं जो हथियारों का जखीरा फैला रहे हैं और एक तरफ आम जनता. आइये आज ६ अगस्त के दिन हम भी पूरी दुनिया की आवाज से आवाज मिलाये और परमाणु हथियारों के खिलाफ अपनी आवाज उढ़ायें. ये आम जनता की आवाज ही थी कि १९७२ में जैविक हथियारों पर बेन लगा, १९९३ में केमिकल हथियारों पर, १९९७ में बारूदी सुरंगो पर और २००८ में क्लस्टर मुनिसन्स (एक प्रकार के खतरनाक हथियार)  पर बेन लगा. जीत तो आखिर आवाम की  ही होगी. तो यकीन रखिये आपकी आवाज पर - एक दिन हथियारों की जगह पर लोगों के विकास के लिए बजट बनेंगे. विश्वास के साथ अपनी आवाज उठाईये - परमाणु हथियारों के खिलाफ खड़े होइए - शांति, अमन और विकास के लिए अपनी आवाज को बुलंद करिये. अमन का रास्ता हमको ही बनाना है

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