Thursday, December 28, 2017

कहीं वो चिराग बुझ न जाए


कहीं वो चिराग बुझ न जाए 

अगले १०० वर्षों में इंसानी कुकृत्यों के कारण धरती माता का तापमान काफी बढ़ जाएगा और उससे विनाश आ जाएगा. उससे पहले ही बढ़ते खून खराबे से दुनिया के कई देशों में लोगों का जीना मुश्किल हो जाएगा. दुनिया संकट में हैं, इंसानियत खतरे में है. कहीं आतंकवाद का खतरा है, कहीं वैचारिक संकीर्णता का जहर फ़ैल रहा है तो कहीं प्रकृति के प्रति इंसान की क्रूरता के दुष्परिणाम नजर आ रहे हैं. इन सब के बीच भी एक चिराग है जिस पर हम उम्मीद कर सकते हैं. क्या है वो चिराग?

जो लोग दुआओं में अमन मांगते  हैं - उनके हम ऋणी हैं क्योंकि हममे से ज्यादातर लोग तो सिर्फ भौतिक  विकास की बात करते हैं और ये भूल जाते हैं की दुनिया में विकास के साथ ही विनाश की शुरुआत हो जाती है. जो लोग सिर्फ और सिर्फ सद्बुद्धि और विवेक की वकालत करते हैं उनके हम ऋणी हैं क्योंकि इंसान और इंसानी समूहों को ईश्वर ने विवेक की अद्भुत ताकत दी है जो हर प्रगति के साथ लुप्त होता जाता है.

इंसान क्या इस पूरी सभ्यता का वजूद किस बात पर निर्भर है? "दुनिया चलती है और चलती रहेगी" ये कहने से पार नहीं पड़ेगा - इस दुनिया के अद्भुत रहस्यों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. इंसानियत और कर्मवाद का रिश्ता टूटना नहीं चाहिए - वरना इस दुनिया का वजूद भी नहीं रहेगा. हर दिन इस दुनिया के लिए खतरे बढ़ रहे हैं. कई देश तो ये ही मान कर बैठे हैं की इस दुनिया को बचाने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है. असहिष्णुता बढ़ रही है. पर्यावरण को खतरा बढ़ रहा है. मानवीय कृत्यों के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है जिससे विनाशकारी परिणाम सामने आ रहे हैं. धरती की हालत "चार मामों का भांजा" जैसी हो गयी है  - जहाँ कोई भी धरती की सुरक्षा और विकास की जम्मेदारी नहीं लेना चाहता है. दुनिया का सबसे बड़ा देश भी अब तो कह रहा है "पेरिस एग्रीमेंट" को मैं नहीं मानता. 

अजीब रहस्य है दुनिया के - चाहे इंसान हो या मुल्क - जैसे जैसे तरक्की करते हैं अपनी बर्बादी का सामान इकठ्ठा करना शुरू कर देते हैं. जो जो मुल्क तरक्की कर रहे हैं - उन सब पर आप नजर डालिये - जैसे ही तरक्की की रफ़्तार तेज होती है वैसे ही कुछ न कुछ ऐसे काम कर देते हैं की तरक्की रुक जाए. दुनिया के सबसे बड़े देशों को लीजिये - तरक्की का कारण था उनकी खुली विचारधारा, वैचारिक सोच, सहष्णुता, प्रतिभा का सम्मान - और आज वो ही मुल्क अपनी चारदीवारी बनाने में लग गया है. तरक्की का कारण था शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास पर खर्च - आज वो ही देश हथियारों की होड़ में उलझ गया है. विकास का सारा श्रेय गलतफहमियां ले रही है और विनाश की तैयारी शुरू हो गयी है. लोगों को देखिये - जब गरीबी के कुचक्र से बहार निकल कर अमीरी की तरफ रुख करते हैं तो साथ ही बहुत कुछ छोड़ देते हैं और बहु कुछ अपना लेते हैं. वे अपना पहनावा, आदतें, शिष्टाचार और खान पान सब बदल देते हैं. एक एक विशेषता की बात करते हैं - मितव्यविता - जिसके कारण वे गरीबी के चक्र को तोड़ पाते हैं - सबसे पहले तो उसी मितव्यविता को लात मार कर फेंक देते हैं. मटकी के पानी की जगह फ्रिज का पानी आ जाता है और दूध मलाई की जगह महंगी विदेशी शराब. लो शुरू हो गयी विनाश की तैयारी. 

इंसानी जूनून भी गजब है. जहाँ भीषण रेगिस्तान होता है - वहां लोग हरियाली ला देते हैं लेकिन जहाँ हरियाली होती है उसे रेगिस्तान बना डालते हैं. जिन्हें सड़क बनाने के लिए सरकार नियुक्त करती है - वो सड़क के दुश्मन बन जाते हैं और दशरथ मांझी जैसे लोग बिन सरकारी सहयोग के ही पूरा पहाड़ काट कर सड़क बना डालते हैं. समझना चाहे तो भी नहीं समझ सकते की कैसे सिर्फ एक हथोड़ी से एक गरीब किसान २२ साल की तपस्या कर के सड़क बना डालता है और कहाँ वो लोग हैं जिनको इसी बात की तनख्वाह मिलती है और वो बिना सड़क बनाये ही बजट खत्म कर देते हैं. जो लोग कठोर अनुशाशन में तप कर तैयार हुए और सफलता की चरम उंचाईयों को पा चुके हैं वो ही लोग आज अनुशाशन को नकार रहे हैं और नई पीढ़ी को दिशाविहीन कर रहे हैं. मतलब साफ़ है की इंसान की सोच और उसका जूनून ही उसको महान बनाता है. 

साधन संपन्न लोगों के बच्चे ऐयाशी में ही अपने कॉलेज के दिन बिता देते हैं वहीँ साधन हीन साईकिल रिक्शा चलाने वाले नारायण जैसवाल का बेटा गोविन्द जैस्वाल आईएएस बन जाता है. क्या करें की हर माँ बाप को गोविन्द जैस्वाल जैसे बच्चे हों? विल्मा रुडोल्फ के लिए डॉक्टर ने कहा की वो चल भी नहीं पाएगी - लेकिन वो तो ओलंपिक्स में दौड़ में तीन तीन गोल्ड मैडल जीत गयी. स्पर्श शाह ऐसी बिमारी से ग्रसित है की खड़ा भी नहीं हो सकता - लेकिन १३ साल की उम्र में ही उसने ज्ञान प्रतिभा का वो कमाल दिखाया की हर कोई हैरान रह जाए. इथियोपिया के अबेबे बिकिला के पास जुटे खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे - तो क्या हुआ - उन्होंने फिर भी ओलंपिक्स में मेराथन जीत लिया. निक यूजीविक के न हाथ हैं न पैर - लेकिन आज वो पूरी दुनिया को जिंदगी कैसे जीनी चाहिए इसका सन्देश देते हैं. मतलब साफ़ है - इंसान ईश्वरी शक्तियों के साथ ही इस दुनिया में आता है और जब वो ठान लेता है तो जो चाहे वो कर के दिखा सकता है. 

ईश्वर ने अपनी अद्भुत ईस्वरीय शक्ति से हम इंसानों को ही इतना सक्षम बना दिया  है की हम चाहें तो विकास कर सकते हैं और चाहे तो विनाश. ईश्वर ने हमारे ही हाथों में हमारे भविष्य को लिखने की अद्भुत शक्ति दे दी है. लेकिन जिस दिन हम लोग अपनी इस जिम्मेदारी को भूल कर अपने ही हाथों अपने भविष्य को मिटाना शुरू कर देंगे उस दिन क्या होगा? 

चलिए छोड़िये विनाश की सामग्री - फिर से मूल बात पर आतेहैं - कही वो चिराग बुझ न जाए. जिस चिराग को बुद्ध, महावीर, और ईसा मसीह ने जलाया - जिस चिराग ने हमको शताब्दियों तक बचाया - कहीं वो चिराग बुझ न जाए. ये चिराग क्या है? ये क्या है जिसने हमारी सभ्यताओं को बचाया और हमको इंसान से फरिश्ता बनाया? सत्य, अहिंसा, आपसी  प्रेम, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, सहिष्णुता, आपसी सम्मान, इस भ्रह्मांड के प्रति सम्मान और कर्मवाद.

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