Thursday, December 28, 2017

उच्च शिक्षा में गुणवत्ता - देश का सुनहरे भविष्य का सृजन



उच्च शिक्षा में गुणवत्ता - देश का सुनहरे भविष्य का सृजन

शिक्षण संस्थाओं के पास बहुत ही मुश्किल कार्य है - देश के भविष्य के
निर्माण का. ये वो संस्थाएं हैं जो विद्यार्थियों के विचार, सोच, तकनीकी
दक्षता, कौशल, हुनर, और ज्ञान के निर्माण की आधारशिला प्रदान करती हैं.
इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर ही देश का भविष्य निर्भर है. शिक्षण
संस्थाओं के पास विद्यार्थियों को तैयार करने के लिए एक बौद्धिक आधार है
जिसके आधार पर देश के चिंतन की दिशा तय होती है. किसी भी शिक्षण संस्थान
का मूल्यांकन आज कल "प्लेसमेंट्स" के आधार पर होने लग गया है - जो  गलत
है. प्लेसमेंट्स तो तकनीकी दक्षता का ही मूल्याङ्कन कर सकता है- लेकिन
शिक्षण संस्थान सिर्फ तकनीकी दक्षता ही प्रदान नहीं करते हैं - वे
विद्यार्थियों को जीवन मूल्य और एक समझ भी प्रदान करते हैं जिनसे
विद्यार्थी अपनी पूरी जिंदगी का निर्माण करते हैं. असल में शिक्षण
संस्थाओं का उद्देश्य तो विद्यार्थियों को परिपक्व नागरिक के  रूप में
तब्दील करना है और प्लेसमेंट्स सिर्फ एक पक्ष है.
उच्च शिक्षण संस्थाओं को अब अक्रेडिटेशन करवाना ही पड़ेगा. अक्रेडिटेशन
यानी उनकी गुणवत्ता का मूल्याङ्कन. भारत में बंगलौर में राष्ट्रीय
मूल्याङ्कन और प्रत्यायन परिसद (NAAC) की स्थापना १९९४ में की गयी. यह
संस्था हर उच्च शिक्षा संसथान का मूल्याङ्कन करती  है और मूल्याङ्कन के
आधार पर उस संस्थान को एक ग्रेड देती है. यह हर पांच साल बाद पुनः
मूल्याङ्कन करती है. इस परिसद ने मूल्याङ्कन के लिए अपने आधार परिभाषित
कर रखे हैं जिनके आधार पर हर शिक्षण संस्थान का मूल्याङ्कन होता है. इस
परिषद् ने निम्न  ६ आधार पर मूल्याङ्कन प्रक्रिया स्थापित कर रखी है  : -

1 अध्ययन - पाठ्यक्रम  - - यानी जो पढ़ाया जा रहा है वो कितना प्रासंगिक है
2 अध्यापन व् मूल्याङ्कन प्रक्रिया
3 शोध और नवाचार
4 संसाधन और सुविधाएं
5 विद्यार्थी केंद्रित व्यवस्थाएं
6 संस्था का प्रशासन और प्रबंधन


चलिए देखते हैं क्या हो रहा है इन क्षेत्रों में (ये किसी एक शिक्षण
संस्थान पर टिपण्णी नहीं है बल्कि आम तौर पर जो हो रहा है उसपर चिंतन है
- हो सकता है की आपकी शिक्षण संस्थान बहुत अच्छी हो और उस पर ये बातें
लागू न हो)  : -
अध्ययन - पाठ्यक्रम  - वो पढ़ाया जा रहा है जो विद्यार्थी के कभी काम ही
नहीं आएगा - जैसे बी.कॉम का विद्यार्थी ऋणपत्र जारी करने पर होने वाली
प्रविष्टि और बैंक रेकन्सीलिएशन स्टेटमेंट बनाने की प्रक्रिया को समझने
में अपना सर खपा देता है जबकि ये काम वो पूरी जिंदगी में कभी नहीं करता
है. जो काम उसको जिंदगी भर करने होते हैं वो उसको सिखाये ही नहीं जाते
हैं. जैसे ऑनलाइन इनकम टैक्स रिटर्न भरना - आदि. (मेरा मकसद  सिर्फ एक
उदाहरण से अपनी बात रखना है.)

अध्यापन व् मूल्याङ्कन प्रक्रिया  - मूल्याङ्कन एक सतत प्रक्रिया होनी
चाहिए - जिसमे विद्यार्थी को उसके विकास में मदद देने का भाव होना चाहिए
न की उसको पास या फेल करने का भाव. हो क्या रहा है - विद्यार्थी को साल
में एक बार परीक्षा देनी होती है जो उसके भाग्य को तय करती है. अगर किसी
कारण से विद्यार्थी उस दिन परीक्षा में अच्छा नहीं लिख पाया या उसको किसी
कारण से कम अंक मिले तो ये उसकी किस्मत.

शोध और नवाचार - शोध उसी को माना जाता  है जो अंग्रेजी के फलां -  फलां
जर्नल में प्रकाशित हो - यानी अपने प्रदेश में और अपनी क्षेत्रीय भाषा
में शोध और नवाचार को प्रचारित करने को कोई प्रोत्साहन नहीं. देश गावों
में बसता है लेकिन सरकार तो उसी को सहारा देगी जो अंग्रेजी बाबू होगा.
(मेरे इन विचारों में त्रुटियाँ हो सकती है - क्योंकि आज पुरे देश में ये
ही माना जा रहा ही की शोध वो ही है जो अंग्रेजी में अंतरास्ट्रीय जर्नल
में प्रकाशित हो)

संसाधन और सुविधाएं  - ये सभी जानते हैं की विद्यार्थी जितना समय
प्रयोगशाला में लगाएगा उतना ही अच्छा है - उद्योगों में काम करने का मौका
मिलने से विद्यार्थी ज्यादा जल्दी सीखेगा. लेकिन उद्योगों और शिक्षण
संस्थाओं में आपसी गठजोड़ है कहाँ?

विद्यार्थी केंद्रित व्यवस्थाएं  - आप स्वयं देखते हैं - विद्यार्थी को
फलां फलां फीस चुकाने के लिए २-३ दिन का समय मिलता है और फिर धकम-पेल -
ये निश्चित है की अधिकाँश शिक्षण संस्थाओं को  विद्यार्थी केंद्रित
व्यवस्थाएं बनाने में अभी समय लग जाएगा.

संस्था का प्रशासन और प्रबंधन - आप भी जानते हैं की शिक्षण संस्थाओं के
प्रबंधन में कितने शिक्षक भागिदार हैं? शिक्षण संस्थाओं का प्रबंधन कितने
दूरदर्शी और बौद्धिक व्यक्ति कर रहे हैं इस पर आप भी यथा स्थिति से वाकिफ
हैं.

ये मूल्याङ्कन इस उद्देश्य से किया जाता है की शिक्षण संसथान की गुणवत्ता
का सही मूल्याङ्कन हो सके और उसकी गुणवत्ता में सुधार के लिए उचित
मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाता है. इस मूल्याङ्कन की प्रक्रिया को पूरी
तरह से पारदर्शी रखा जाता है. मूल्याङ्कन के समय में बंगलौर स्थित परिसद
के प्रतिनिधि के रूप में कई प्रोफेस्सर मूल्याङ्कन करने के लिए आते हैं
जो शिक्षण संस्थान में सभी विद्यार्थियों, शिक्षकों, पुराने
विद्यार्थियों और (पूर्व विद्यार्थियों के) नियोक्ताओं से मिलते हैं और
शिक्षण संस्थान की गुणवत्ता के मूल्याङ्कन का प्रयास करते हैं और अपनी
रिपोर्ट को बंगलौर स्थित परिषद् को प्रेषित करते हैं. आज अधिकाँश शिक्षण
संस्थाएं इस मूल्यांकन प्रक्रिया से कतरा हैं - कारण आप समझ सकते हैं.
आइये हम सब दुआ करें की हर शिक्षण संस्था उच्चतम गुणवत्ता मानदंडों को
हासिल करे और हर शिक्षक विद्यार्थी का कायाकल्प करने में कामयाब हो ताकि
हमारे देश का भविष्य उज्जवल बने. आइये हम दुआ करें की हर शिक्षण संस्थान
को श्रेष्ठम गुणवत्ता का सर्टिफिकेट मिले और हमारे क्षेत्र में कोई भी
उच्च शिक्षण संस्थान बिना अक्क्रेडिटेशन के न रहे.

तकनीकी शिक्षण संस्थाओं की गुणवत्ता के मूल्याङ्कन के लिए नेशनल बोर्ड ऑफ़
अक्रेडिटेशन की स्थापना भी १९९४ में की गयी है जो शिक्षण संस्थाओं की
गुणवत्ता के मूल्याङ्कन का कार्य करती है

अमेरिका में उच्च शिक्षण संस्थाओं के मूल्याङ्कन के लिए अनेक मूल्याङ्कन
करने वाली संस्थाएं आगे आयी है जिनमे से करीब १० संस्थाओं को वहां की
सरकार ने भी मान्यता दे रखी हैं.
धीरे धीरे शिक्षण संस्थाओं के मूल्याङ्कन के कार्य से सरकारें मुक्त हो
रही है और ये काम प्रोफेशनल सोसाइटीज आगे बढ़ कर ले रही है जो की शिक्षण
संस्थाओं का मूल्यनकन पूर्व-निर्धारित मापदंडों के आधार पर करने का
प्रयास करती हैं.
चूँकि आज उच्च शिक्षण संस्थाओं के मूल्याङ्कन में उनके द्वारा किये जाने
वाले नवाचार और शोध को सबसे ज्यादा तबज्जु दी जाती है अतः आज इस बात पर
भी बल दिया जाने लगा है की शिक्षण संस्थाओं को पूरी तरह से आजादी दी जाए
ताकि वे अपनी पूरी क्षमता से नवाचार और शोध के क्षेत्र में कुछ शानदार
कार्य कर सकें.

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