Tuesday, December 30, 2014


काश शिक्षण संस्थाएं फिर से गावों  कस्बों और अपने शहरों को देखें
अपने शहर के प्रति सम्मान जगाएं
विदेशों में कई देशों में "लव माय सिटीकांटेस्ट चलता हैफोर्ड जैसी कई कंपनियां इस तरह के कांटेस्ट को स्पांसरकरती हैकाश यह कॉन्टेस्ट भारत में भी शुरू हो जाएमैं ऐसा इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि आज हमारा युवा अपनेशहरअपने गाव और अपने मोहल्ले से दूर जाना चाहता हैआज हमारा युवा वर्ग मृग - मारीचिका के फेर में फंसगया हैजो एक गाव में रहता है उसको शहर अच्छा लगता हैजो शहर में रहता है वह महा-नगर में जाना चाहता है,जो महा-नगर में रहता है वह विदेश में जाना चाहता हैहर युवा  पलायन करना चाहता है. "ब्रेन - ड्रेननामक बिमारीसे तो भारत काफी समय से ग्रसित है लेकिन आज तो हर गावहर कसबे और हर शहर का विद्यार्थी अपना भविष्यकिसी और बड़े शहर में बनाना चाहता हैइसका कारण भी कुछ सीमा तक मीडिआ और कुछ सीमा तक शिक्षणसंस्थान हैंआज हर विद्यार्थी को यह लगता है की उसके शहर में आगे की पढाई की सम्भावना नहीं है और उसकोआगे बढ़ने के लिए किसी बड़े शहर में जाना पड़ेगा.
स्थानीय उद्योगों और स्थानीय संस्थाओं से जुड़ें
शिक्षण संस्थान विद्यार्थियों को वह पढाई नहीं करवा रहे हैं जो उस शहर में काम  सकेइसका कारन यह है कीशिक्षण संस्थाएं स्थानीय उद्योग धंधों से सम्पर्क नहीं स्थापित करती है और उनकी जरूरतों को समझने का प्रयासनहीं करती हैंशिक्षण संस्थाएं विद्यार्थियों में अपने गाव और शहर के प्रति लगाव पैदा करने का प्रयास भी नहींकरती हैंओद्योगिक भ्रमण पर विद्यार्थियों को दिल्ली - बम्बई ले जाय जाएगा परन्तु कभी अपने शहर के उद्योगोंकी विजिट का या अपने शहर की विरासत और धरोहर को दिखने का प्रयास नहीं किया जाएगा.
विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर आस-पास भी  ले जाएँ
अक्सर स्कुल और कॉलेज के प्रबंधक बजट का रोना ले कर विद्यार्थियों को कही भी घुमाने से कतरा जाते हैं.शैक्षिणक भ्रमण बहुत ज्यादा बजट का बनाया जाता है और वह आधे से ज्यादा विद्यार्थियों को भारी लगता है औरइस कारण सभी विद्यार्थियों की भागीदारी भी नहीं हो पाती हैअगर ये ही संस्थाएं अपने शहर की श्रेष्ठ संस्थाओं केभ्रमण से शुरुआत करें तो हर विद्यार्थी को शैक्षणिक भ्रमण का मौका मिलेगा और वह उस भ्रमण से अपने भविष्यकी योजना भी बना पायेगायह बड़ा अच्छा लगता है जब कोई विद्यार्थी यह बताता है की उसको शैक्षणिक भ्रमणपर बंगलौर के विश्वश्वरैया  साइंस म्यूजियम ले जाय गया या उसको सांस्कृतिक भ्रमण पर क़ुतुब मीनार ले जायगयालेकिन बड़ा दुःख होता है जब यह पता चलता है की उसको अपने ही शहर की सांस्कृतिक विरासत का कोई भीआभास नहीं हैमेरे अपने शहर बीकानेर में मुझे बहुत काम विद्यार्थी मिलते हैं जिन्होंने बीकानेर का म्यूजियम याबीकानेर का अभिलेखागार या बीकानेर की उरमूल डेरी का भ्रमण किया होमुझे अपने शहर के विद्यार्थियों केसामान्य ज्ञान पर फक्र होता है लेकिन तब बहुत दुःख होता है जब देखता हूँ की  उनको अपने ही शहर केविश्वविद्यालयों के पाठ्य्रक्रमों की जानकारी नहीं होती हैवे विद्यार्थी माइक्रौसौफ़्ट और वालमार्ट के लिए तो तयारीकरते हैं और उनकी समस्यों पर चर्चा करते हैं लेकिन बीकानेर के उद्योगों के लिए कोई तयारी नहीं करतेवे अपनेसपनों में माइक्रौसौफ़्ट और वालमार्ट को देखते हैं  की बीकानेर और उसके आस पास के उद्योगों कोवे "समरइंटर्नशिपके दो महीनों में विदेशी कम्पनियों के सेल्समेन के रूप में काम कर लेते हैं लेकिन अपने ही पड़ोस कीफैक्ट्री की कार्यप्रणाली को सुधरने के लिए कोई नजर तक नहीं डालते.
अपने शहर और अपनी विरासत से जोड़ें विद्यार्थियों को
आज यह देख कर बड़ा अच्छा लगता है की हमारे देश के प्रधानमंत्री की हमारी मातृ भाषा हिंदी बोलने में शर्म नहींआती है और इसी कारण हिंदी को फिर से लोग सम्मान के साथ बोलने लगे हैंआज यह देख कर अच्छा लगता है कीहमारे देश के शीर्ष अधिकारी हिंदी भाषियों को तिरस्कार से नहीं बल्कि सम्मान से देखने लगे हैंकाश आजादी कायही दौर चालु रहे और लोग फिर से अपने गाव और अपने शहर को सम्मान से देखना शुरू करेंकाश शिक्षण संस्थाएंफिर से विद्यार्थियों को अपने गाव और अपने शहर से जोड़ने के लिए प्रयास करेंकाश ऐसा हो की मेरे शहर में साहित्य को पढ़ाने वाला शिक्षक शेक्सपिअर की कहानियां सुनाने की जगह मेरे ही शहर के कथा-करों औरसाहित्यकारों से विद्यार्थियों को रूबरू करवाये और उनकी लिखी कहानियों पर चर्चा का मौका देकाश मेरे शहर में प्रबंधन  को पढ़ाने वाला शिक्षक फोर्ड और पीटर ड्रकर की कहानियां सुनाने की जगह मेरे ही शहर के उद्योगपतियों से विद्यार्थियों को रूबरू करवाये और उनकी निर्णय प्रक्रिया और नेतृत्व कला  पर चर्चा का मौका दे.

No comments:

Post a Comment