Tuesday, December 30, 2014

शिक्षा  : डूबती नैया का सहारा

टीवीफिल्मों व् इंटरनेट के द्वारा फैशन और आधुनिकता के नाम पर जहर
परोसा जा रहा हैआप हम सभी मूक दर्शक बने देख रहे हैंकभी डेटिंग तो
कभी लिविंग - इन रिलेशनशिप तो कभी इनसे भी घिनोनी हरकतों को दिखाया जाता
है और समाज को तहस नहस करने के प्रयास किये जा रहे हैंहमारे युवा वर्ग
इनकी चपेट में  रहे हैंआज इस तबाही के तूफ़ान में भी कोई आशा की किरण
नजर  रही है तो वह है शिक्षा व्यवस्थाशिक्षा वह अमृत घूंट है जो किसी
भी विष से बचा सकता हैआज जब हम सब मुसीबत मैं हैं तो अपने बच्चों को
संस्कार और अच्छी शिक्षा दे कर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं की हमारा
समाज और हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा.
कोई स्कुल नहीं सिखाती मीडिया स्किल्स
आज हर विद्यार्थी अपना आधे से ज्यादा समय मीडिया के साथ बिताता हैपरन्तु
कोई स्कुल नहीं सिखाती है की मीडिया को कैसे काम में लेवेंकोई भी स्कुल
विद्यार्थियों को टीवीफिल्म और इंटरनेट के प्रयोग और उसके दुष्परिणामों
के बारे में नहीं बतातीमीडिया तो एक बण्डल है जिसमे अच्छी बातें भी है
और बुरी बाते भीआप क्या चयन करते हैं वह आप पर निर्भर हैयह एक
प्रशिक्षण का विषय हैबड़ा अफ़सोस है की कोई स्कुल ये सब नहीं सिखाते है
तो स्कुल  ही घर - कोई नहीं है सिखाने वाला - नतीजा - गुमराह होते हमारे
किशोरस्कुल वर्षों पुराने अपने सिलेबस को नहीं बदलना चाहतेअध्यापक
सिलेबस से अलग पढने की हिम्मत  नहीं करना चाहतेनिजी क्षेत्र सिर्फ
आमदनी बढ़ाने और शो-बाजी में रूचि लेता है और सरकारी तंत्र के बारे में तो
क्या कहें.
बहुत कुछ सीखा जा सकता है मीडिया से
आप ये  समझे की में टीवीफिल्म और इंटरनेट के खिलाफ हूँइनसे बहुत कुछ
सीखा जा सकता है लेकिन इस हेतु एक माहोल तो बनाना पड़ेगागुजरात के नानजी
भाई ने अपनी स्कुल में रेडियो क्लब बनाये और विद्यार्थियों को विज्ञानं
जगत और इस प्रकार के अन्य प्रोग्राम सुनने के लिए प्रेरित कियावे जिस
जिस गाव में गए वहां पर रेडियो पर आने वाले ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों को
लोकप्रिय बना देते थे (उस समय में मोबाइल नहीं थे). बीकानेर में
रामपुरिया महाविद्यालय में बहुत पहले एक फिल्म क्लब था जिसमे कलात्मक
फिल्मो को दिखाया जाता था और उस पर चर्चा होती थीमीडिया भी जीवन का एक
हिस्सा हैविद्यार्थियों को नहीं पता की उनको मीडिया का इस्तेमाल कैसे
करना है - यह तो उनको सिखाना पड़ेगा
कुछ नहीं सिखाते हैं हम अपनी संस्कृति बचाने के लिए
आज अधिकांश लोग बहुत दुखी होते हुए आपसे कहेंगे की स्नातक करने के बावजूद
भी विद्यार्थी एक आवेदन तक ढंग से नहीं लिख सकते हैंमैं भी दुखी हूँ
लेकिन इस कारण से नहीं - इससे भी बड़े कारण सेआवेदन नहीं लिख पाते कोई
बात नहींउन्हें अभिवादन करना नहीं आताबात करना नहीं आता ढंग के कपडे
पहनना नहीं आताऔर तो और भोजन करना और पानी पीना भी नहीं आताछोटे होते
परिवार सारी जिम्मेदारी स्कुल पर डाल देते हैं और स्कुल इनमे से कुछ भी
नहीं सिखाते हैंक्या बात कर रहें हैं आप आवेदन करने कीयहाँ तो जीवन
जीने की कला भी नहीं सिखाई जाती हैजितनी महँगी स्कुल उतना ही बुरा हाल.
विश्वास नहीं हो तो आजमा कर देख लीजियेएक गाव की साधारण सी दिखने वाली
स्कुल में जाइएबिना परिचय के भी उसके विद्यार्थी आपका अभिवादन करेंगे.
एक महंगे स्कुल में जाइएक्या आपको कोई अभिवादन मिलता है?फिर बच्चों
के टिफिन पीरियड में जा कर देखिये - खाते हैं, कैसे खाते हैं और क्या पीते हैं
और कितना भोजन फैंक देते हैंउनको आजादी दीजिये अपनी मर्जी के कपडे
पहनने की और आपको मजबूर हो कर अपनी आँखे बंद करनी पड़ेगी - क्योंकि वैसे
कपडे किसी भी रूप में सभ्यता के प्रतीक नहीं हैंउनसे आप एक भजन या एक
देशप्रेम का गाना  गाने को कहिये - नहीं आएगाउनसे आप एक कविता या कहानी
या एक प्रेरक संस्मरण सुनाने को कहिये - कुछ नहीं बोल पाएंगेउनसे आप
हमारी कला और संस्कृति के बारे में कुछ बोलने या कुछ कर दिखाने का कह कर
देखिये.  ये वही बच्चे हैं जिनको हमारी अद्वितीय संस्कृति को संजो संजो
कर अगली अगली पीढ़ी तक देना हैं.
नशे की गिरफ्त में समाज
एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में २१किशोर शराब की गिरफ्त में हैं तथा
लगभग .तो नशे की गिरफ्त में हैंयह संख्या लगातार बढ़ रही हैदेश
में आर्थिक प्रगति के साथ ही नशे की प्रवृति भी बढ़ रही हैजहाँ जहाँ पर
आर्थिक प्रगति ज्यादा हो रही है वहां वहां पर नशे की प्रवृति भी बढ़ रही
हैहमें स्कूलों से ही बच्चों में इतने मजबूत संस्कार देने पड़ेंगे की
नशे की प्रवृति की नौबत ही नहीं आयेआधुनिकता के नाम पर जो संस्कृति
परोसी जा रही है वह शराब और नशे को बढ़ावा दे रही हैआज जरुरत है तो फिर
से एक मजबूत शिक्षा तंत्र बनाने की.
कहाँ गयी समूह में सिखने की प्रवृति
स्कुल हमें समाज में बेहतर जीवन शैली के लिए तैयार करती हैलेकिन
प्रतिस्पर्धा और व्यक्तिगत उपलब्धि को प्राथमिकता देती आजकी स्कूलें
हमारे बच्चों को समूह में काम करने की कला से वंचित कर रही हैगुजरात
में गोधरा के अध्यापक रमेश भाई ढोडकिया ने स्कुल की लड़कियों को मोहल्ले
के अनुसार समूह में बाँट दियाफिर हर समूह को पढ़ने और समूह चर्चा करने
का कार्य सौंपा गयाधीरे धीरे इसे उन्होंने इसे एक प्रोजेक्ट का नाम दे दिया
प्रोजेक्ट सखीइस प्रोजेक्ट के कारण छात्राओं को पढ़ने और लिखने का एक
बेहतरीन माहोल मिला और उनके व्यक्तित्व का विकास हुआ साथ ही उनमे समूह
में कार्य करने की कला का विकास भी हुआआज कल जहाँ हर जगह टूशन और
कोचिंग का बोलबाला है ऐसे प्रयोग बहुत कम अध्यापक करते हैंआज फिर से
जरुरत है की विद्यार्थियों को समूह में मिल कर पढ़ाने और सिखाने की
व्यवस्थाओं की शुरुआत हो.
हम किसी भी मुसीबत से बचने के लिए आपात प्रबंधन और आपदा प्रबंधन के इतने आदि
हो गए हैं की जब तक मुसीबत नाक - नाक नहीं हो जातीहम कुछ नहीं करते
हैंआज भी हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं और इन्तजार कर रहें हैं की जब सब
कुछ ख़त्म हो जाएगा तो राहत सामग्री आएगी.

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