Tuesday, December 30, 2014


जिस जिसने देखि पीड पराईउस उसकी आँखे भर आई
भारत एक नई करवट ले रहा हैआज फिर से समय  गया है की हम भारतीयता पर गर्व करें और भारतीय जीवनमूल्यों को पूरी दुनिया के सामने विश्वास के साथ प्रस्तुत करेंभारत हमेशा से एक ऐसी विचारधारा का देश रहा हैजिसने अहिंसाआपसी भाईचारासहिष्णुता व् प्राणी मात्र के प्रति प्रेम को बढ़ावा देने वाले जीवन मूल्यों कोप्रोत्साहित किया हैआज जब हम देख रहें हैं की पूरी दुनिया इस बात पर बहस कर रही है की क्या यह उचित है कीइंसान की कभी  खत्म होने वाली भूख के लिए जंगलोंपेड़ोंजानवरों और जीव-जंतुओं का बलिदान होक्या किसीकम्पनी के मुनाफे को बढ़ाने की लिए गैर जरुरी केमिकलदवाइयाँऔर पर्यावरण के लिए हानिकारक उत्पादों कोप्रोत्साहन दिया जाए और एक ऐसी जीवन शैली को प्रोत्साहन मिले जिसमे आदमी अपने सिवाय किसी और के लिएनहीं सोचताआज फिर से भारतीय विचारधारा दुनिया का मार्गदर्शन कर सकती है और भारतीय लोग फिर से अपनेजीवन मूल्यों पर आधारित उत्पाद और सेवाओं को बढ़ावा दे सकते हैं. .

फिर शुरू करें आजादी बचाओं आंदोलन को
३० नवम्बर का दिन भारत में स्वदेशी आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण दिन हैश्री राजीव दीक्षित का जन्म दिन भी३० नवंबर है और उनकी पुण्य तिथि  (उनकी मृत्यु का राज अभी भी बरकरार हैभी ३० नवंबर हैश्री राजीव दीक्षितने भारत के गरीब किसानों और कारीगरों के दर्द को समझाउन्होंने भारत में स्वदेशी आंदोलनआजादी बचाओंआंदोलन और भारत स्वाभिमान यात्रा को लोकप्रिय बनायाश्री राजीव दीक्षित के  मुख्य विचार थे जो आज हम कोफिर से समझने का प्रयास करना चाहिए : -
भारत की असली आजादी अभी बाकी हैआज भी वे ही कानूनवे ही व्यवस्थाएं हैं जो ब्रिटिश सरकार ने भारत कोनस्ट करने के लिए लागू किये थेआज भी इनकम टैक्स जैसे कानून जारी हैं जिनका मकसद भारत के लोगों कोबेईमान बनाना और उनके व्यापार उद्योग धंधों को बंद करना थाआज भी पुलिस व्यवस्था वैसे ही काम कर रही हैजैसे ब्रिटिश सरकार के समय में करती थीअसली आजादी के लिए इन सभी कानूनों और व्यवस्थाओं में बदलाव कीजरुरत है.
भारत आज भी अपने किसानों और कारीगरों के साथ अन्याय कर रहा हैकिसानों को उनकी परम्परागत कृषिव्यवस्था से विमुख कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हितों को बढ़ावा देने हेतु गोबर की जगह फ़र्टिलाइज़र औरपेस्टिसाइड का इस्तेमाल बढ़ाया जा रहा हैकारीगरों को उनकी परम्परागत कला के प्रोत्साहन हेतु कोई प्रोत्साहननहीं हैं.
गोमाता के संरक्षण की जरूरत है और गोमूत्र से अधिकांश बिमारियों का इलाज संभव हैपरम्परागत भारतीयइलाज व्यवस्था को फिर से जगाने की जरूरत है.
भारत की परम्परागत न्याय व्यवस्थाशिक्षा व्यवस्थास्वास्थ्य व्यवस्था और ज्ञान व्यवस्था को  ब्रिटिशसरकार ने समूल नष्ट करने का प्रयास कियाआज भी उन संस्थाओं और व्यवस्थाओं की कोई कदर नहीं हैफिर सेएक आंदोलन की जरुरत है जो हम को अपनी परम्पराओं से जोड़ सके.
स्वदेशी को बढ़ावा देने और विदेशी को बहार निकालने की जरूरत है और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दुष्चक्र औरउनकी नीतियों को समझने की जरूरत है.
श्री राजीव दीक्षित स्वयं  आई आई टी से पढ़े लिखे थे परन्तु उन्होंने भारतीय ज्ञान और शोध को सीखा और समझाऔर आम लोगों को समझने का प्रयास कियाआज अगर हम उनको फिर से समझने के प्रयास करते हैं तो उनकाबलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा.
घिनौने और अमानवीय मृत्यु दंड
रेहनेह जब्बारी को इस कारण मौत की सजा दे दी गयी की उसने अपनी इस्मत को बचाने के लिए प्रयास किया और इस प्रयास में उसने एक दरिंदे को मार दिया. अपनी इस्मत को बचाने के प्रयास में उससे हत्या हो गयी. उस २७ वर्षीय महिला की जान लेने का निर्णय लेने वालों से पूरी दुनिया आरजू करती रही परन्तु उन्होंने कोई रहम नहीं किया. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार ईरान ने वर्ष २०११ में ३६० लोगों को मौत कीसजा दीइनमे से  महिलाएं और  अवयस्क शामिल थेऐसा वहां हर वर्ष होता हैआज ३० नवम्बर है -  जीवन अंतर्राष्ट्रीय दिवस - मृत्यु दंड के खिलाफ और जीवन के लिएक्या हम मरें हुए लोगों को जिन्दा कर सकते हैंनहींतो फिर मारने का हक हम को किसने दियाक्या हम पूरी तरह से न्याय कर सकते हैंनहीं - कई बार तो तथ्य भीपूरी तरह से पता नहीं होतेतो फिर न्याय के नाम पर किसी की जान कैसे ले सकते हैंये कानून भी हमने ही बनायेहैं और ये कानून भी बदलते रहते हैंकिसी सत्ताधारी व्यक्ति के लिए कोई कानून तो किसी दलित वंचित व्यक्ति केलिए अलग कानूनफिर इन कानूनों की आड़ में हम ईश्वर बन किसी की जिंदगी खत्म करने का फैसला कैसे करसकते हैं?
समस्या किसी की -  निर्णय किसी और का
आज हर जगह पर यह समस्या है की हम दूसरों की समस्या को समझ नहीं पा रहे हैं और उनके भाग्य विधाता बननेकी कोशिश कर रहे हैंजब हम यह नहीं जानते की उनको क्या समस्या है तो फिर हम कैसे तय कर सकते हैं उनकेफैसलेनिजी क्षेत्र में किसी व्यक्ति की नौकरी लगाने से पहले उसकी उस कार्य को करने की क्षमता और उसकीलगन को जांचा जाता हैबिना किसी उच्च अधिकारीयों के काम कर रही अधिकांश निजी क्षेत्र की संस्थाओं में पहलेव्यक्ति की कार्य दक्षता का मूल्याङ्कन होता है और उसके बाद उसके नियोजन की कार्यवाही होती हैइसके विपरीतउच्च पदस्थ सरकारी विभागों में नियुक्ति के लिए एक लिखित परीक्षा ली जाती है और डिग्री को तबज्जु दी जाती है.मैंने एक गाव में बच्चों को स्कुल के अध्यापक से नहीं बल्कि  स्कुल के ही चपरासी से पढ़ते देखा हैबच्चों का कहनाथा की अध्यापक नहीं पढ़ातापरन्तु चपरासी उनको बड़ी रूचि से पढाई करवाता हैउस अध्यापक को उसकी डिग्रीके आधार पर प्रमोशन भी मिलता गया और वह पूरी तनख्वाह भी लेता रहाजब भी किसी  शिक्षक की नियुक्ति याप्रमोशन किया जाना है तो यह नहीं देखा जाता की शिक्षक का बच्चों पर कैसा प्रभाव पड़ाशिक्षक को पढ़ाने काकितना जूनून हैशिक्षक पढने के प्रति कितना समर्पित हैबल्कि यह देखा जाता है की उसके कितने नंबर है औरउसने कितनी डिग्रियां ले राखी हैयही है हमारे प्रशाशन की कमजोरी.

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