Wednesday, December 31, 2014


विश्व शांति और प्रगति के लिए  जादुई छड़ी - सहनशीलता

सहनशीलता एक ऐसा गुण है जिसको पूरी दुनिया आज स्वीकार कर रही है.इसको बचपन से ही जीवन में उतरने की जरुरत है. अगर यह गुण हर व्यक्ति में होगा तो आपसी सामंजस्य औरसौहार्द बढ़ेगा और लड़ाई झगडे की सम्भावना कम होगी.
सहनशीलता को जीवन में उतारने के लिए भारतीय साहित्य व् संस्कृति में व्यवस्थाएं हैं.  आज के दिन पुरे विश्व कोभारत के इतिहास  से सहनशीलता का सन्देश सीखना चाहिएभारत हमेशा से सहनशीलता की मिसाल रहा हैयहाँएक से बढ़ कर एक संत हुए हैं जिन्होंने सहनशीलता को अपने जीवन में अपनाया है और लोगों को सहनशीलता सेजीने का सन्देश दिया हैभारतीय इतिहास तो सहनशीलता के एक से बढ़ कर एक कारनामों का इतिहास हैहरमहापुरुष एक से बढ़ कर एक योगी हुआ है और योगी के रूप में उसने कष्ट सहने और विपरीत परिस्थियों का भी स्वागत करने की मिसाल स्थापित कर जबरदस्त आदर्श प्रस्तुत किये हैं
कहाँ गयी सहनशीलता?
जब में छोटा था तो साइकिल चलना सीखते वक्त अक्सर सड़क में किसी से टकरा जाता था तो मुझे आज भी याद हैकी टकराने वाला वापस पूछता था की कहीं लगी तो नहींझगड़ा करने की जगह पर सामना वाला व्यक्ति प्रेम सेपूछता था की कैसे होसमय का मिजाज बदल रहा हैआज कल में महानगरों में देखता हूँ की जरा से खरोंच लगनेपर भी लोग लड़ने को लिए तैयार रहते हैंमोटर सयकिल पर लगी खरोंच के बाद वे झगडे कर के एक दूसरे पर भीखरोंच लगा डालते हैंसहनशीलता तो जैसे अब नयी पीढ़ी से गायब ही हो गयी है.

कैसे बढ़ाएं सहनशीलता को ?
आज दुनिया की समस्याओं का कोई समाधान है तो वह है सहनशीलता को बढ़ावा देनाअधिकांश समस्याएं आपसीटकरावप्रतिस्पर्धाद्वेषजलन और मन-मुटाव से हो रही हैदुनिया में धन की कमी नहीं हैं लेकिन आपसी प्रेमऔर सौहार्द की कमी के कारण यह स्वर्ग नरक में बदल गया है.  छोटे छोटे मुद्दों पर लड़ाई टकरावमनमुटाव,तलाकऔर हिंसा का रूप ले लेती हैहर वर्ष लाखों लोग आपसी हिंसा के शिकार हो जाते हैं. प्रश्न है की सहनशीलताको बढ़ावा देने के लिए क्या करेंइस लेख में मैं ऐसे ही कुछ बिन्दुओं पर चर्चा करूँगा जिनसे सहनशीलता को बढ़ावादेने में मदद मिलेगी जैसे क्षमाशिक्षाविविधता आदि.
शिक्षा
हेलेन केलर : "शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ परिणाम है व्यक्ति में सहनशीलता का भाव"
आज फिर से हमें शिक्षा व्यवस्था को मूल्य परक बनाना पड़ेगा और हमारे विद्यार्थियों को वे संस्कार परोसने पड़ेंगेताकि उनकी सहनशीलता और विवेक शक्ति बढे.
आलोचना को बढ़ावा देने की जरुरत
आलोचना हर व्यक्ति की मदद करती हैकबीर तो कह गए हैं की निंदक को आप अपने पास रखिये वह आपकाहितेषी है.
निंदक नियरे राखिएऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानीसाबुन बिनानिर्मल करे सुभाय।
आज फिर से हमें युवा पीढ़ी को आलोचना सुनने और उससे सीख लेने की शिक्षा देनी हैआलोचना और निंदा में फर्कहैआलोचना व्यक्ति की कमियों को उजागर करने का प्रयास है जो उस व्यकित को स्वयं बताया जाता हैआलोचनासे व्यक्ति को सुधार और प्रगति के अवसर मिलते हैं.
पर निंदा से बचें
सहनशीलता से जुड़ा हुआ मुद्दा है पर-निंदा काजिस तरह आज लोग एक दूसरे की निंदा कर रहें हैं उससे आपसीप्रेम और सहयोग कैसे पनपेगाकबीर तो तिनके की भी निंदा करने से मन करते हैं. “तिनका कबहुँ ना निन्दियेजोपाँवन तर होयकबहुँ उड़ी आँखिन पड़ेतो पीर घनेरी होय।“

पारिवारिक माहौल
परिवार आधारित संस्कृति को फिर से प्रोत्साहन की जरुरत है और फिर से पारिवारिक मूल्यों और आपसी सम्मान और सहृदयता को बढ़ावा देने की जरुरत है. पारिवारिक माहौल में बच्चे सहनशीलता के गुण बचपन से ही सीख जाते हैं. भारतीय संयुक्त परिवार प्रथा भी सहनशीलता के आदर्शों पर ही टिकी हुई है.

क्षमा
जीसस ने सूली चढाने वालों को भी माफ़ कर दियामहावीर ने उस सांप को भी  आशीर्वाद दिया जिसने उनको डंसाऔर इतनी करुणा और प्रेम से उसको देखा की जहाँ भी उसने दस वहां से उसके लिए खून की जगह दूध निकला.जिस ग्वाले ने महावीर के कान में कील ढोंक दी उसको भी महावीर ने आशीर्वाद दियामीरा की सहनशीलता का कोईमुकाबला नहीं हैउसने हँसते हँसते विष पियाहँसते हँसते सब कास्ट सहे और फिर भी कभी अपशब्द नहीं बोला.

आपसी सामंजस्य
सहनशीलता आपसी प्रेम और सामंजस्य  का ही दूसरा नाम हैआपसी प्रेम और सामंजस्य बढ़ने पर एक दूसरे कोसहन करना सीख जाते हैंअतः संगठन के हर स्तर पर आपसी प्रेम और सामंजस्य को बढ़ावा देने की जरुरत है.इसके लिए आपसी संवादखुलापनऔर आपसी सम्मान को बढ़ावा देने वाले मूल्य हमें फिर से स्थापित करने हैंऔर उन मूल्यों को बढ़ावा देना हैकबीर कह गएँ हैं पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआपंडित भया  कोयढाई आखर प्रेमकापढ़े सो पंडित होय।


आत्म-विश्लेषण पर हो जोर
सहनशीलता को बढ़ावा देने के लिए आत्म-विश्लेषण को बढ़ावा देने की जरुरत हैजब व्यक्ति आत्म विवेचन करताहै और अपनी गलतिया देखने लग जाता है तो उसके लिए जीवन आसान हो जाता है.  “ बुरा जो देखन मैं चलाबुरा मिलिया कोयजो दिल खोजा आपनामुझसे बुरा  कोय।“

विविधता को बढ़ावा देने की संस्कृति
भारत हमेशा से विविधता को बढ़ावा देने वाली संस्कृति रहा है. यहाँ हर स्तर पर विविधता है. भारत मेंआपको ऐसे अनेक लोग मिलेंगे जिनको सभी धर्मों की जानकारी है और विविध विचारों का गहन अध्ययन किया है.गंगाशहर में रहने वाले श्री ज्वाला प्रसाद शाश्त्री एक ऐसे ही विद्वान थेवे मौलवियों को कुरआन समझाया करते थेतो जैनाचार्यों को तत्त्वार्थसूत्रवे उर्दू भी उतनी ही अच्छी बोलते थे जितनी अच्छी संस्कृतऐसे लोगों ने ज्ञान के बीचकी दीवारों को तोड़ के रख दियाकबीररहीममीराचैतन्य महाप्रभुरामदेवनानक आदि संत जाती धर्म औरसम्प्रदाय से ऊपर उठ हर व्यक्ति के लिए अजीज थे और उनके अनुयायियों में हिन्दू व् मुस्लिम एक साथ  करबैठते थे और बिना किसी धार्मिक संकीर्णता से चर्चा करते थे.

वैचारिक मतभेद का स्वागत
जैन दर्शन अनेकांतवाद व् स्याद्वाद के द्वारा वैचारिक विविधता का स्वागत करता हैप्राचीन भारतीय शिक्षणसंस्थाओं में वाद विवादतत्व मीमांसाऔर चर्चा के लिए प्रोत्साहन होता थाहर राज्य का राजा धर्म और तत्व केमुद्दों पर शाश्त्रार्थ करवाया करते थे और इस बहस को गौर से सुनते थेइस प्रकार प्राचीन भारतीय परंपरा मेंवैचारिक विविधता के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन था.
सहनशीलता का आदर्श प्रस्तुत करता  नेतृत्व
अकबर को महान ऐसे ही नहीं कहा जाताअकबर सभी धर्म मानने वालों को इज्जत देता थावह सभी धर्म गुरुओंको सम्मान से नमन करता था और उनसे उनके धर्म पर प्रवचन सुनता थाऐसे ही अशोक महानचन्द्रगुप्त,समुद्रगुप्त आदि राजाओं के समय में अलग अलग धर्म और अलग अलग विचारों वाले लोगों के साथ बड़े ही सम्मानके साथ व्यवहार किया जाता थाअशोक स्वयं बौद्ध धर्म मानता था लेकिन वह उस समय के सभी धर्मों को सम्मानदेता थाआईये हम सब मिल कर विपरीत विचारधारा को सहन करने और सम्मान करने  की क्षमता को बढ़ावादेने के लिए प्रयास शुरू करें.

No comments:

Post a Comment