विश्व शांति और प्रगति के लिए जादुई छड़ी - सहनशीलता
सहनशीलता एक ऐसा गुण है जिसको पूरी दुनिया आज स्वीकार कर रही है.इसको बचपन से ही जीवन में उतरने की जरुरत है. अगर यह गुण हर व्यक्ति में होगा तो आपसी सामंजस्य औरसौहार्द बढ़ेगा और लड़ाई झगडे की सम्भावना कम होगी.
सहनशीलता को जीवन में उतारने के लिए भारतीय साहित्य व् संस्कृति में व्यवस्थाएं हैं. आज के दिन पुरे विश्व कोभारत के इतिहास से सहनशीलता का सन्देश सीखना चाहिए. भारत हमेशा से सहनशीलता की मिसाल रहा है. यहाँएक से बढ़ कर एक संत हुए हैं जिन्होंने सहनशीलता को अपने जीवन में अपनाया है और लोगों को सहनशीलता सेजीने का सन्देश दिया है. भारतीय इतिहास तो सहनशीलता के एक से बढ़ कर एक कारनामों का इतिहास है. हरमहापुरुष एक से बढ़ कर एक योगी हुआ है और योगी के रूप में उसने कष्ट सहने और विपरीत परिस्थियों का भी स्वागत करने की मिसाल स्थापित कर जबरदस्त आदर्श प्रस्तुत किये हैं
कहाँ गयी सहनशीलता?
जब में छोटा था तो साइकिल चलना सीखते वक्त अक्सर सड़क में किसी से टकरा जाता था तो मुझे आज भी याद हैकी टकराने वाला वापस पूछता था की कहीं लगी तो नहीं. झगड़ा करने की जगह पर सामना वाला व्यक्ति प्रेम सेपूछता था की कैसे हो. समय का मिजाज बदल रहा है. आज कल में महानगरों में देखता हूँ की जरा से खरोंच लगनेपर भी लोग लड़ने को लिए तैयार रहते हैं. मोटर सयकिल पर लगी खरोंच के बाद वे झगडे कर के एक दूसरे पर भीखरोंच लगा डालते हैं. सहनशीलता तो जैसे अब नयी पीढ़ी से गायब ही हो गयी है.
कैसे बढ़ाएं सहनशीलता को ?
आज दुनिया की समस्याओं का कोई समाधान है तो वह है सहनशीलता को बढ़ावा देना. अधिकांश समस्याएं आपसीटकराव, प्रतिस्पर्धा, द्वेष, जलन और मन-मुटाव से हो रही है. दुनिया में धन की कमी नहीं हैं लेकिन आपसी प्रेमऔर सौहार्द की कमी के कारण यह स्वर्ग नरक में बदल गया है. छोटे छोटे मुद्दों पर लड़ाई टकराव, मनमुटाव,तलाक, और हिंसा का रूप ले लेती है. हर वर्ष लाखों लोग आपसी हिंसा के शिकार हो जाते हैं. प्रश्न है की सहनशीलताको बढ़ावा देने के लिए क्या करें? इस लेख में मैं ऐसे ही कुछ बिन्दुओं पर चर्चा करूँगा जिनसे सहनशीलता को बढ़ावादेने में मदद मिलेगी जैसे क्षमा, शिक्षा, विविधता आदि.
शिक्षा
हेलेन केलर : "शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ परिणाम है व्यक्ति में सहनशीलता का भाव"
आज फिर से हमें शिक्षा व्यवस्था को मूल्य परक बनाना पड़ेगा और हमारे विद्यार्थियों को वे संस्कार परोसने पड़ेंगेताकि उनकी सहनशीलता और विवेक शक्ति बढे.
आलोचना को बढ़ावा देने की जरुरत
आलोचना हर व्यक्ति की मदद करती है. कबीर तो कह गए हैं की निंदक को आप अपने पास रखिये वह आपकाहितेषी है.
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
आज फिर से हमें युवा पीढ़ी को आलोचना सुनने और उससे सीख लेने की शिक्षा देनी है. आलोचना और निंदा में फर्कहै. आलोचना व्यक्ति की कमियों को उजागर करने का प्रयास है जो उस व्यकित को स्वयं बताया जाता है. आलोचनासे व्यक्ति को सुधार और प्रगति के अवसर मिलते हैं.
पर निंदा से बचें
सहनशीलता से जुड़ा हुआ मुद्दा है पर-निंदा का. जिस तरह आज लोग एक दूसरे की निंदा कर रहें हैं उससे आपसीप्रेम और सहयोग कैसे पनपेगा? कबीर तो तिनके की भी निंदा करने से मन करते हैं. “तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जोपाँवन तर होय, कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।“
पारिवारिक माहौल
परिवार आधारित संस्कृति को फिर से प्रोत्साहन की जरुरत है और फिर से पारिवारिक मूल्यों और आपसी सम्मान और सहृदयता को बढ़ावा देने की जरुरत है. पारिवारिक माहौल में बच्चे सहनशीलता के गुण बचपन से ही सीख जाते हैं. भारतीय संयुक्त परिवार प्रथा भी सहनशीलता के आदर्शों पर ही टिकी हुई है.
क्षमा
जीसस ने सूली चढाने वालों को भी माफ़ कर दिया. महावीर ने उस सांप को भी आशीर्वाद दिया जिसने उनको डंसाऔर इतनी करुणा और प्रेम से उसको देखा की जहाँ भी उसने दस वहां से उसके लिए खून की जगह दूध निकला.जिस ग्वाले ने महावीर के कान में कील ढोंक दी उसको भी महावीर ने आशीर्वाद दिया. मीरा की सहनशीलता का कोईमुकाबला नहीं है. उसने हँसते हँसते विष पिया, हँसते हँसते सब कास्ट सहे और फिर भी कभी अपशब्द नहीं बोला.
आपसी सामंजस्य
सहनशीलता आपसी प्रेम और सामंजस्य का ही दूसरा नाम है. आपसी प्रेम और सामंजस्य बढ़ने पर एक दूसरे कोसहन करना सीख जाते हैं. अतः संगठन के हर स्तर पर आपसी प्रेम और सामंजस्य को बढ़ावा देने की जरुरत है.इसके लिए आपसी संवाद, खुलापन, और आपसी सम्मान को बढ़ावा देने वाले मूल्य हमें फिर से स्थापित करने हैंऔर उन मूल्यों को बढ़ावा देना है. कबीर कह गएँ हैं पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेमका, पढ़े सो पंडित होय।
आत्म-विश्लेषण पर हो जोर
सहनशीलता को बढ़ावा देने के लिए आत्म-विश्लेषण को बढ़ावा देने की जरुरत है. जब व्यक्ति आत्म विवेचन करताहै और अपनी गलतिया देखने लग जाता है तो उसके लिए जीवन आसान हो जाता है. “ बुरा जो देखन मैं चला, बुरान मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।“
विविधता को बढ़ावा देने की संस्कृति
भारत हमेशा से विविधता को बढ़ावा देने वाली संस्कृति रहा है. यहाँ हर स्तर पर विविधता है. भारत मेंआपको ऐसे अनेक लोग मिलेंगे जिनको सभी धर्मों की जानकारी है और विविध विचारों का गहन अध्ययन किया है.गंगाशहर में रहने वाले श्री ज्वाला प्रसाद शाश्त्री एक ऐसे ही विद्वान थे. वे मौलवियों को कुरआन समझाया करते थेतो जैनाचार्यों को तत्त्वार्थसूत्र, वे उर्दू भी उतनी ही अच्छी बोलते थे जितनी अच्छी संस्कृत. ऐसे लोगों ने ज्ञान के बीचकी दीवारों को तोड़ के रख दिया. कबीर, रहीम, मीरा, चैतन्य महाप्रभु, रामदेव, नानक आदि संत जाती धर्म औरसम्प्रदाय से ऊपर उठ हर व्यक्ति के लिए अजीज थे और उनके अनुयायियों में हिन्दू व् मुस्लिम एक साथ आ करबैठते थे और बिना किसी धार्मिक संकीर्णता से चर्चा करते थे.
वैचारिक मतभेद का स्वागत
जैन दर्शन अनेकांतवाद व् स्याद्वाद के द्वारा वैचारिक विविधता का स्वागत करता है. प्राचीन भारतीय शिक्षणसंस्थाओं में वाद विवाद, तत्व मीमांसा, और चर्चा के लिए प्रोत्साहन होता था. हर राज्य का राजा धर्म और तत्व केमुद्दों पर शाश्त्रार्थ करवाया करते थे और इस बहस को गौर से सुनते थे. इस प्रकार प्राचीन भारतीय परंपरा मेंवैचारिक विविधता के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन था.
सहनशीलता का आदर्श प्रस्तुत करता नेतृत्व
अकबर को महान ऐसे ही नहीं कहा जाता. अकबर सभी धर्म मानने वालों को इज्जत देता था. वह सभी धर्म गुरुओंको सम्मान से नमन करता था और उनसे उनके धर्म पर प्रवचन सुनता था. ऐसे ही अशोक महान, चन्द्रगुप्त,समुद्रगुप्त आदि राजाओं के समय में अलग अलग धर्म और अलग अलग विचारों वाले लोगों के साथ बड़े ही सम्मानके साथ व्यवहार किया जाता था. अशोक स्वयं बौद्ध धर्म मानता था लेकिन वह उस समय के सभी धर्मों को सम्मानदेता था. आईये हम सब मिल कर विपरीत विचारधारा को सहन करने और सम्मान करने की क्षमता को बढ़ावादेने के लिए प्रयास शुरू करें.
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