आसान है भारतीयता से जोड़ना - जरा पहल कर के देखो
आज हर कोई कह रहा है की शिक्षा व्यवस्था को भारतीयता से जोड़ने की जरुरत है. यह बड़ा आसान भी है लेकिनपहल करने की जरुरत है. क्या हमारी पब्लिक स्कूल ये पहल कर पाएंगी - यह सिर्फ इंतज़ार कर सकते हैं. भारतीयव्यवस्थाओं को हम खोते जा रहे हैं और हर दिन हम किसी न किसी ज्ञान व् परंपरा को खो रहें हैं. यह एक ऐसानुक्सान है जिसकी भरपाई असंभव है. जिस दिन हम अपनी भारतीयता को खो देंगे उस दिन हम को इस नुक्सान काअहसास होगा.
शिक्षण संस्थाओं में विदेशी संस्कृति और विदेशी दिखावेपन की अंधी होड़ मची है. एक ऐसे माहोल में भारतीयपरम्परों का अनुसरण अपने आप में चुनौती होगी. फिर भी अगर कोई संस्था पहल करना चाहे तो मैं उनको निम्नसुझाव देना चाहूंगा : -
जोड़िये भारतीय संस्कृति और मूल्यों से :
आज की लगभग सभी समस्यायों का समाधान संभव हैं अगर हम मानवता को भारतीय संस्कृति और मूल्यों कीबारीकियों से जोड़ सकें. मानव की सबसे मुलभुत आवश्यकताओं से शुरुआत करते हैं - भोजन,परिवार औरमनोरंजन - इन 3 बिन्दुओं को हमारे अंग्रेजी भाषी मित्रों की सुविधा के लिए मैंने 3F यानि फ़ूड, फैमिली एंड फन कीचुनौती के रूप में देख सकते हैं. आज के आधुनिक शिक्षण संस्थान भोजन के नाम पर जंक फ़ूड यानी बासी भोजन,परिवार के नाम पर संकीर्ण सोच और मनोरंजन के नाम पर फूहड़ नाच गाने और भोंडापन परोस रहें हैं. यही हमारीजीवन शैली को बर्बाद कर रहें हैं. इन समस्याओं से जूझने के लिए हमको संगठित और नियोजित प्रयास करने पड़ेंगे.यहाँ पर मैं निम्न सुझाव प्रस्तुत करूँगा :
गार्डन्स नहीं जंगलों से जोड़िये
आज की संस्कृति गार्डन्स को बढ़ावा देने की संस्कृति है लेकिन भारतीय संस्कृति हमेशा से प्रकृति से इसकेस्वाभाविक स्वरुप में प्रेम करने की है. आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफ़ेसर अनिल गुप्ता और उनके विद्यार्थी सालमें दो बार शोधयात्रा पर जाते हैं जिसमे वे गाव गाव में पैदल जाते हैं और लोगों से बात करते हैं और लोगों से उनकीपरम्पराओं के बारे में जानकारी लेते हैं. एक गाव उंनको ऐसा मिला जिसमे गाव के लोग मिल कर चंदा कर के अपनेजंगलों को बचाने और पेड़ों को सुरक्षित रखने के लिए गार्ड नियुक्त करते हैं जो उस गाव से जुड़े जंगलों को सुरक्षितरखने हेतु पहरा देते हैं. कोटा के रहने वाले बॉटनी के प्रोफ़ेसर लक्ष्मी कांत दाधीच जंगल काट कर उपवन लगाने केसख्त खिलाफ हैं और यहाँ तक की फूल तोड़ने तक की इजाजत नहीं देते. उन्होंने अपने घर में शादी के समारोह कोपूरी तरह से इको-फ्रेंडली शादी बनाने के लिए उसमे किसी भी जगह फूलों का उपयोग नहीं किया. पर्यावरण प्रेमीप्रोफेसर दाधीच एक एक व्यक्ति को पर्यावरण की सीख देते हैं और उस सीख को अपने जीवन में भी उतारते हैं.
जंगलों से जोड़ने के लिए जंगलों को बचाना पड़ेगा और विद्यार्थियों को जंगलों से जोड़ना पड़ेगा. प्रोफ़ेसर अनिलगुप्ता को अपनी शोध यात्रा में एक गाव में एक ऐसा बालक मिला जिसको गाव में पायी जाने वाली २५० वनस्पतियोंकी विस्तृत जानकारी थी (उनका नाम, उनका उपयोग आदि). सिर्फ यही नहीं, उस बालक में सीखने की इतनीजिजीविषा थी की उसने कहा की अगले एक वर्ष में वह ३०० और वनस्पतियों की जानकारी भी हासिल कर लेगा. यहीहै भारतीय सोच और समझ की परिणति.
टीवी नहीं बड़े- बुजुर्गों से जोड़िये
आज हर विद्यार्थी स्कुल से आते ही टीवी से चिपक जाता है. कार्टून नेटवर्क और कई अन्य खतरनाक TV चैनलविद्यार्थी को एक अलग दुनिया में ले जाते हैं जिस का इंतज़ाम हमारे लिया और खास कर भारतीय संस्कृति के लिएबहुत बुरा होगा. शिक्षण संस्थाओं को ऐसे प्रयास करने पड़ेंगे ताकि विद्यार्थी को फिर से घर, परिवार और समाज सेजोड़ा जा सके. अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो फिर ये TV चैनल हमारे विद्यार्थियों में क्रोध, लोभ, लालच, आपसीकलह और ऐसी अन्य बुराइयों से भर देंगे. .
राष्ट्रीय नव-प्रवर्तन प्रतिष्ठान हर वर्ष एक प्रतियोगिता आयोजित करता है जिसका नाम है IGNITE जिसमेविद्यार्थी अपने आविष्कार या अपने विचार लिख कर भेजते हैं. हर वर्ष सैकड़ों विद्यार्थी इस में अपने नवाचार भेजतेहैं. यह बड़ी सुखद बात है की विद्यार्थियों के ज्यादातर नवाचार घर के भुजुर्गों और घर की महिलाओं की मदद केलिए होते हैं. जैसे एक विद्यार्थी ने एक नवाचार लिख कर भेजा जिससे घर में धुले चददरों और बड़े कपड़ों कोआसानी से निचोड़ा जा सके. उस विद्यार्थी ने देखा की उसकी माँ को बड़े चददरों को निचोड़ने में बड़ी दिक्कत आतीथी अतः उस विद्यार्थी ने इसका समाधान सोचा. विद्यार्थियों की प्रविष्टियों को देख कर लगता है की जो काम बड़ीबड़ी कंपनियां या बड़े बड़े वैज्ञानिक नहीं कर सकते हैं वे काम विद्यार्थी घर पर बैढे कर लेते हैं. जब विद्यार्थी अपनेपरिवार में अपनी सृजनशीलता का इस्तेमाल करेंगे और अपने नवाचार से परिवार को बड़े बुजुर्गों को फायदा पहुंचानेकी सोचते हैं तो यह भारतीयता की अभिव्यक्ति है. CSIR भी इसी प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित करती है जिसमें हर वर्ष विद्यार्थियों के नवाचार को पुरस्कृत किया जाता है. इस प्रकार के प्रयास वाकई सार्थक हैं और इनसेविद्यार्थियों को जोड़ने की जरुरत है.
फ़िल्मी गानों नहीं भजनों और लोक गीतों से जोड़िये
हर मनुष्य को संगीत पसंद होता है. संगीत और कला हमारे जीवन को एक नया आयाम और सुकून देते हैं. लेकिन इनको व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना तो शिक्षण संस्थाओं का दायित्व है. आज आप जहाँ भी जाते हैं तो आप पाते हैं की विद्यार्थी मिल कर नृत्य, संगीत, और अंताक्षरी के कार्यक्रम आयोजित करते हैं. लेकिन उन कार्यक्रमों में विद्यार्थियों के चयन किये गए गाने और नृत्य फूहड़ होते हैं. यहाँ शिक्षण संस्थाओं की जिम्मेदारी आती हैं की वे विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति में रचे बेस शानदार संगीत और हमारी विरासत से जोड़े. फ़ूहड़ फ़िल्मी गानों की जगह पर शानदार भजनों और लोकगीतों से जोड़ने की जिम्मेदारी तो हम सब की है लेकिन इस में शिक्षण संस्थाओं को पहल कर के अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी. आज तो वे इस हेतु कोई प्रयास ही नहीं कर रहीं हैं. स्पिक मकाय जैसी संस्थाओं के साथ मिल कर हर शिक्षण संस्था इस हेतु एक शानदार पहल कर सकती हैं.
सारांश
अगर आप मेरे विचारों से सहमत हों तो आईये हम सब मिल कर पहल करें. एक शुरुआत करें ताकि लुप्त होतीभारतीय संस्कृति को बचाया जा सके. आईये शिक्षण संस्थाओं पर दबाव बनायें की वे भारतीयता से विद्यार्थियों कोजोड़ें. आईये फिर से विद्यार्थियों को जंगल, संस्कृति, लोक कला, व् परिवारों से जोड़ें. आइये विद्यार्थियों को अपनेदेश, समाज और परिवार की मदद करने के लिए अविष्कार करने हेतु प्रेरणा देवें और उनको IGNITE जैसीप्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करें. उनको मार्गदर्शन देंगे तो हमारा भविष्य और हमारी संस्कृति सुरक्षितरहेंगे.
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