देश को जरुरत है ट्रेडिशनल नॉलेज रिसर्च सेंटर की
मैं इस लेख के माध्यम से बीकानेर शहर में एक नए शोध केंद्र की स्थापना के लिए प्रयास कर रहा हूँ. बीकानेर शहरहमारे देश के विकास में योगदान दे सकता है अगर यहाँ पर एक ऐसा केंद्र स्थापित हो जो हमारे ट्रेडिशनल नॉलेज कोसंजोने व् प्रकाशित करने का कार्य करे. इस प्रकार के केंद्र की शुरुआत कर के हम ज्ञान, तकनीक, व् प्राचीनपरम्पराओं के क्षेत्र में अनूठी शुरुआत कर कयेंगे.
विकसित और विकास-शील देशों में एक बड़ा फर्क यह है की विकसित देशों का ज्ञान व् तकनीक की क्षेत्र में प्रभुत्व है.विकसित देश शोध और अनुसन्धान पर बहुत ध्यान देतें है. इसी कारण ज्यादातर नोबल पुरस्कार विकसित देशों केवैज्ञानिक ले जाते हैं. विकसित देशों में शोध केंद्र और शोध संस्थाओं का कार्य प्रशंसनीय है. सामान्यतः शोध केंद्रनयी शोध कर कुछ नया प्रकाशित करने का कार्य करते हैं. लेकिन मैं यहाँ एक ऐसे शोध केंद्र के लिए अनुरोध करनाचाहता हूँ जो कुछ नया नहीं करेगा, बल्कि पुराने ज्ञान को ढूंढने, संजोने, संवारने और उसको डॉक्यूमेंट करने का कार्यकरे. हमारे देश को ज्ञान के क्षेत्र में आगे आने की जरुरत है. तकनीक, पेटेंट आदि के क्षेत्र में हम लोग काफी पीछे हैं.ऐसा इस लिए नहीं की हम वाकई पीछे हैं. ऐसा इसलिए है की हम हमारे ज्ञान को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत नहीं करपाये हैं. अतः आज ऐसे शोध केंद्र की जरुरत है जहाँ हम हमारे ज्ञान को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत कर सकें औरउसको पेटेंट कर सकें.
ट्रेडिशनल नॉलेज से मतलब है प्राचीन ज्ञान जो वर्षों से गाँव गाँव में लोग काम में लाते आये हैं. यह वह ज्ञान हैजिसका कोई लिखित डॉक्यूमेंट नहीं है. लेकिन इस ज्ञान की कीमत बहुत है या यो कहें की यह अनमोल है. अफ़सोसहै की यह अब लुप्त हो रहा है. जैसे जैसे समय बीतता जायेगा, यह ज्ञान लुप्त हो जायेगा. आज कई ऐसे पेशे हैं जोलुप्त हो चुके हैं. कई पेशों में सिर्फ गिने चुने लोग ही बचे हैं और उनके बाद उनकी अगली पीढ़ी उस ज्ञान को संजोकर रखने में नाकामयाब हैं. इस ज्ञान को संजो कर इस का डॉक्यूमेंटेशन (एक प्रकार का पेटेंट) भी करवाया जासकता है ताकि लोग इस ज्ञान का दुरूपयोग नहीं करें.
भारत में प्राचीन ज्ञान बिखरा हुआ है तथा इसका कोई व्यवस्थित डॉक्यूमेंटेशन नहीं हुआ है. अलग अलग क्षेत्रों मेंअलग अलग विषयों का ज्ञान है. रेगिस्तानी क्षेत्रों में पानी व् हरियाली कम होती थी अतः यहाँ के लोगों ने पानी बचाने व् हरी सब्जियों को सुखा कर प्रयोग में लाने के अनेक तरीके विकसित किये. हो सकता है की आज वेसामान्य सी बात लगे, परन्तु कल वे ही तरीके लुप्त हो जायेंगे. मैंने २०-३० साल पुराने निम्बू के आचार को खा करदेखा है जो इसी रेगिस्तानी क्षेत्र में बना है और बिना किसी आधुनिक केमिकल के भी वह उतना ही स्वास्थ्य-वर्धक हैजितना की होना चाहिए. लेकिन आने वाले समय में ये बातें सिर्फ इतिहास का हिस्सा होंगी.
हर क्षेत्र में हमारे पुरखों ने अपनी अलग तकनीक विकसित की थी जो आज के मशीनीकरण के ज़माने में काम कीनहीं है. लेकिन उस तकनीक और उससे जुड़े ज्ञान की हम को फिर से भविष्य में जरुरत पड़ेगी जब हम फिर सेपर्यावरण अनुकूल विकास की तरफ बढ़ेंगे. लेकिन भविस्य में न यह तकनीक बचेगी न तकनीक जानने वाले लोगबचेंगे. अतः आज इस बची-खुची तकनीक को संजोने व् संवारने की जरुरत है.
कुछ प्राचीन दक्षताएं : -
· बारिश के पानी को संजोने में हमारे कुण्ड आदि
· कृषि की क्षेत्र में हमारे परंपरागत उपयोग व् तकनीकें
· घरेलु इलाज और घरेलु औषधियां
· स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए हमारे प्राचीन तरीके
· सोनार, लोहार, कुम्हार आदि पेशे तकनीक पर आधारित पेशे हैं और इस क्षेत्र से सम्बंधितबहुत ज्ञान इन पेशों के साथ जुड़ा है.
· गाव - गाव में कुए खोदने व् उनको बनाने के लिए अलग तकनीक उपयोग होती आई है.
· गाय, भेड़, ऊंट, बकरी आदि पालने से सम्बंधित हमारा परंपरागत ज्ञान
· कला के क्षेत्र में हमारा परंपरागत ज्ञान व् तरीके
· अलग अलग तरह के व्यंजन और उनको बनाने की विधियां .
· जड़ी बूंटियों से सम्बंधित हमारा परम्परागत ज्ञान
काफी परंपरागत ज्ञान ऐसा है जिसका डॉक्यूमेंटेशन संभव नहीं है. अतः ऐसे ज्ञान को संजोने के लिए उनका वीडियोफिल्म बना कर उस ज्ञान को संजोया जा सकता है. इस प्रकार के ज्ञान को संजोने के साथ उससे सम्बंधितजानकारियों को लिख कर संजोया जा सकता है.
विलुप्त होती शब्दावली
आज हम अंग्रेजी व् अन्य विदेशी भाषाओँ में दक्षता हासिल कर रहें हैं. लेकिन इस प्रक्रिया में हमारी क्षेत्री भाषाएँ,हमारी पुरानी भाषाएँ लुप्त हो रहीं हैं. हर शब्द अपने आप में एक ज्ञान और एक अनुभूति की अभिव्यक्ति है लेकिनजब शब्द ही नहीं तब अभिव्यक्ति कैसे होगी. एक समय हमारे पास बारिश के लिए अनेक शब्द थे - अलग अलगतरह की बारिश को व्यक्त करने के लिए. लेकिंग समय के साथ ये शब्दावली भी लुप्त हो रही है. ऐसे समय में आजहमारे पास एक ऐसी संस्था की जरुरत है जहाँ पर इस प्रकार के विलुप्त होती शब्दावली को संरक्षित करने काप्रावधान हो.
विलुप्त होती कहानिया व् संस्कृति
इतिहास के पन्नों में आप को पन्ना धाय का अलौकिक बलिदान मिल जाएगा. लेकिन ऐसे बलिदान की गाथाएं आबआम लोगों की स्मृति से विलुप्त हो रहीं हैं. ये घटनाएँ आज हमें एक प्रेरणा देती हैं और हम को जीवन जीने की सीखदेती है.
विलुप्त होते लोक गीत, परम्पराएं व् रीति रिवाज
लोक गीत सिर्फ गीत नहीं, वे हमारी मान्यताएं, हमारी संस्कृति व् हमारी परंपरा को उजागर करते हैं. इससे पहले कीये लुप्त हों, हमें इनका संरक्षण कर लेना चाहिए.
श्री जतन लाल दुग्गड़ ने राजस्थानी मुहावरों व् लोकोक्तियों का एक संकलन प्रकाशित किया है.
बीकानेर ही क्यों ?
बीकानेर में परम्पागत ज्ञान पर कार्य करने वाले काफी विद्वान हैं. प्रोफेसर श्रीलाल मोहता, श्री कृष्ण चन्द्र शर्मा, श्रीभवानी शंकर व्यास विनोद आदि का इस क्षेत्र में काफी कार्य किया हुआ है. अजित फाउंडेशन ने भी इस क्षेत्र में कईप्रकाशन किये हैं. अतः इस प्रकार के केंद्र की स्थापना बीकानेर शहर में की जाती है, तो इस से इस केंद्र को फायदाहोगा और इन विद्वानों के मार्गदर्शन में केंद्र जल्दी से अपने वांछित लक्ष्य की तरफ बढ़ पायेगा. जितना जल्दी यहकेंद्र स्थापित होगा, उतना ही हम हमारी परम्पराओं को संजोने में हम कामयाब होंगे
No comments:
Post a Comment