Tuesday, December 30, 2014

उनसे मिलवाईए जो ओरों के लिए जीते हैं


हर स्कुल और कॉलेज के सामने एक बेहतरीन अवसर है की वे चाहे तो देश और समाज को एक नयी दिशा देने वाले नेतृत्व को तैयार कर सकते हैं. इसके लिए एक छोटी सी शुरुआत करनी पड़ेगी. वह शुरुआत होगी विद्यार्थियों को ऐसे लोगों से मिलवाने की जो ओरों के लिए जीते हैं. ऐसे लोगों से मिलना ही अपने आप में एक परिवर्तन की शुरुआत है. जितनी जल्दी ये शुरुआत होगी, उतना ही अच्छा है. आज भी इस देश में अनेक ऐसे लोग हैं जो त्याग, समर्पण और मानवीय जीवन मूल्यों की जीती जागती मिसाल हैं. लेकिन ऐसे लोगों को खोजना पड़ेगा और यह कार्य आसान नहीं हैं 

मुझे ऐसे अनेक लोगों से मिलने का मौका मिला और यह लगा की अगर उन लोगों से पहले मिला होता तो बेहतर रहता. मुझे इन लोगों कुछ खास विशेषतायें मिली जो इन लोगों को असाधारण बनती है. जिनमे से कुछ बाते इस प्रकार हैं: - 
१. बिना किसी अहम या घमंड के सहज और मौलिक रूप में जीवन जीने का नजरिया
२. बिना किसी दर या झिझक के आम आदमी के साथ मिल कर उसके दुःख दर्द कम करने के लिए प्रयास करने की आदत
३. हर व्यक्ति से घुल मिल कर बात कर उसकी मदद को तत्पर रहने वाले ये लोग बहुत  आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच से भरे होते हैं और निरपेक्ष भाव से जीवन जीते हैं. 
४. मैंने यह देखा की ये व्यक्ति किसी बेहतरीन मकसद के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देते हैं. इनके सभी संसाधन और इनका समय उस मकसद के लिए काम आ जाता हैं और इस प्रकार ये व्यक्ति देश और दुनिया को अद्भुत तोहफे दे जाते हैं. 
५. ऐसे व्यक्ति अपने लिए नहीं ओरों के लिए ही जीते हैं अतः इनका नजरिया बहुत ही परोपकारी होता है. 
६. ऐसे लोगों के पास मिल कर लगता है की जब ये व्यक्ति इतना बड़ा काम कर के भी साधारण रह सकते हैं तो हम भी कुछ बड़ा काम कर सकते हैं. 

 
इसी कारण में हर स्कुल और कॉलेज से यह अनुोध करता हूँ की विद्यार्थियों को एक नयी दिशा दिखने  के लिए इस दिशा में एक पहल होनी चाहिए. आज आधुनिक संचार सुविधाओं और यातायात सुविधाओं के कारण यह संभव है की हम विद्यार्थियों को वे अवसर दे सकते हैं जो जीवन को एक नयी दिशा दे सके. मैं यहाँ पर पद्म श्री से सम्मानित श्री ईश्वर भाई पटेल से मुलाकात के मेरे संस्मरण आपको बताना चाहता हूँ  आज पुरे भारत में साफ़ सफाई और स्वतछता की बात हो रही है. अगर आज श्री इस्वर भाई पटेल जिन्दा होते तो वे बहुत खुश होते. दरअसल उन्होंने अपना पूरा जीवन स्वतछता और दलितों के उत्थान को समर्पित किया. उन्होंने अपने जीवन के ७० वर्ष इसी क्षेत्र में कार्य कर लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने का प्रयास किया. एक समय था जब भारत में मैला ढ़ोने की घृणित प्रथा प्रचलित थी. श्री पटेल ने इस प्रधा के खिलाफ आवाज उठाई और इसको जड़ से समाप्त किया. इस हेतु उन्होंने गाव गाव जा कर आधुनिक शौचालय स्थापित किये और उनको स्थापित करने के काम को लोकप्रिय बनाया. 

श्री ईश्वर भाई पटेल ने अपना पूरा जीवन हरिजन सेवा को समर्पित कर दिया. वे लगभग ७ वर्ष की उम्र से गांधी जी से जुड़ गए थे. गांधी जी के विचारों को उन्होंने अपने जीवन में  अपनाया  और अन्य लोगों को भी अपनाने  को प्रेरित किया.  उनको इस प्रक्रिया में बहुत सामाजिक विरोध और संघर्ष का सामना करना पड़ा.  १२ साल की उम्र में जब उन्होंने एक दलित महिला से झाड़ू ले कर सफाई की तब उनके घर वालों ने उनको नहला नहला कर स्वच्छ किया. परन्तु इस्वर भाई पटेल तो कुछ और   ठान चुके थे. उनका मकसद तो दलितों की जिन्दगीको बदलना बन चूका था. उन्होंने गाव गाव जा कर मैला धोने की प्रथा के खिलाफ आवाज उठायी. लेकिन उनको यह देख कर बहुत दुःख हुआ की मैला धोने वाले लोगों ने ही उनका विरोध किया. उनको यह समझ आ गया की मैला धोने वालों की जीवन-यापन के लिए भी साथ में सोचना पड़ेगा. अतः उन्होंने मैला ढ़ोने वालों को रोजगार दिलाने और उनको बेहतर जीवन यापन के लिए प्रेरित करने का काम भी शुरू किया. गाव गाव जा कर शौचालय स्थापित करने के काम में उन्होंने इन लोगों को शामिल किया. उनके इन प्रयासों से गाव गाव में शौचालय षटपिट होने लगे. उन्होंने शौचालय के डिज़ाइन पर भी काफी शोध किया तथा ऐसा डिज़ाइन बनाया जिसमे काम से काम पानी काम में लेना पड़े. उनको पश्चिमी शौचालय भारतीय परिस्थिति के अनुकूल नहीं लगे क्योंकि उनमे पानी ज्यादा चाहिए होता है. अतः उन्होंने नए शौचालय बना कर उसके डिज़ाइन कम्पनियों को दिए और इसका एक म्यूज़ियम भी बनाया.  १९६९ में उन्होंने सफाई विद्यालय (जो की हरिजन सेवक संघ का एक भाग था) के प्रमुख के रूप में कार्य शुरू किया. उन्होंने "सैनिटेशन" की एक व्यवस्थित प्रशिक्षण प्रणाली भी शुरू की और सफाई कर्मियों को प्रशिक्षण देने की लिए व्यवस्थित प्रयास शुरू किये. 

श्री पटेल एक बेहतरीन कार्यकर्त्ता और एक बेहतरीन प्रशाशक थे. उन्होंने एक टीम बनायीं जो उनके साथ मिल कर कार्य करती थी और गाव गाव जा कर गांधी जी के आदर्शों को जन जन में फैलाती थी. उन्होंने साबरमती के आश्रम में अत्यंत सादगी से रहते हुए एक आदर्श जीवन को जी कर बताया और जो भी उनके सम्पर्क में आया वह उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. पुरे जीवन गांधी जी के आदर्शों को समर्पित करने वाले श्री पटेल आज हम सब के लिए एक आदर्श हैं. १९८५ में उन्होंने एनवायरनमेंट सैनिटेशन इंस्टिट्यूट नमक एक संस्था शुरू की जिसके तहत उन्होंने साफ़, सफाई, स्वतछता, और सैनिटेशन पर कार्य शुरू किया. इसके बाद उन्होंने सफाई कर्मियों के प्रशिक्षण, हरिजनों के प्रशिक्षण और सैनिटेशन के लिए शोध और और नवाचार पर एक व्यवस्थित संस्थागत प्रयास शुरू किया. 

श्री पटेल व्यक्तिगत जीवन में बहुत ही सरल हृदयी, मिलनसार, और हंसी मजाक करने वाले व्यक्ति थे. मैं १९९४ में उनसे मिला था. जब में उनसे मिला तब उनका स्वास्थय ठीक नहीं था फिर भी उन्होंने मुझे पूरा समय दिया. वे अपने शरीर को अपने से अलग मानते थे. अतः जब उनको भयंकर दर्द होता था तोभी मुस्कुराते रहते थे. आखिरी समय में उनको बहुत कष्ट रहा. परन्तु जब डॉक्टर उनका ऑपरेशन करते थे तब भी वे मुस्कुराते रहते थे. भयंकर शारीरक वेदना के समय भी वे मुस्कुरा कर कह देते थे की यह वेदना तो इस नश्वर  शरीर की है. श्री पटेल से मिल कर उनके जीवन दर्शन को देखना अपने आप में अभूतपूर्व अनुभव था. मैं चाहता हूँ हर विद्यार्थी को ऐसे अनुभव मिलें. श्री पटेल तो अब दुनिया में नहीं हैं लेकिन इस अद्भुत भारत भूमि मैं अनेक ऐसे लोग हैं जो ओरों के लिए जीते हैं. 

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