बौद्धिक सम्पदा की अकूत सम्पदा का देश भारत
२३ नवंबर १९३७ को भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस इस धरती से विदा हुए. आज का दिन उनकी यादमें भारत के महान वैज्ञानिकों को समर्पित है. श्री जगदीश चन्द्र जी ने इंग्लैंड में पढाई करने के बाद भारत माँ कीसेवा करने के लिए कलकत्ता में ही नौकरी की और रिटायर होने के बाद बोस संस्थान की स्थापना की. उन्होंने विज्ञानंको जन जन में लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया. उनके कलकत्ता आने के कारण कलकत्ता में विज्ञानं की शिक्षा औरशोध में जबरदस्त बढ़ावा हुआ. हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और उनके अधूरे काम को पूरा करने का प्रयास करनाचाहिए.
श्री जगदीश चन्द्र जी ने अनेक आविष्कार किये. आम भारतीय वैज्ञानिकों की तरह वे भी यह मानते थे की ज्ञान कापेटेंट करवाने की जरुरत नहीं है और ज्ञान को जितना बांटा जाए उतना ही अच्छा है. इस हेतु उन्होंने अपने सारेआविष्कारों के बारे में लोगों को विस्तार से बताया. उन्होंने अपने वैज्ञानिक प्रयोगों को आम जनता के सामनेकबताया जिससे लोगों में वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक चेतना का जागरण हो. वे सही मायने में भारतीय सोच केप्रतिनिधि थे.
भारत हमेशा से ज्ञान की अद्भुत भूमि रहा है. यहाँ महान से महान वैज्ञानिक हुए हैं लेकिन उन्होंने कभी अपने ज्ञानको पेटेंट करवाने की नहीं सोची. प्ररन्तु आज के समय में बौद्धिक सम्पदा का रजिस्ट्रेशन जरुरी है. विकसित देश बौद्धिक सम्पदा के रजिस्ट्रेशन का फयदा उठा रहे हैं. वहां के हर वैज्ञानिक अपने आविष्कारों का पेटेंट करवा लेते हैं और उससे उनको रॉयल्टी के रूप में काफी आय मिलती है. चाहे हमें यह बात अच्छी न लगे परन्तु आज के इस भौतिक युग में अगर हम अपने बौद्धिक ज्ञान को पेटेंट नहीं कार्यायेंगे तो कोई विदेशी उसका पेटेंट करवा लेंगे. जैसे की पहले नीम, हल्दी, तुलसी और बासमती चावल के पेटेंट के रूप में हो ही चूका है. बौद्धिक सम्पदा (जैसे की पेटेंट) आदि के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान बनाने की जरुरत है और साथही शिक्षण संस्थाओं को भी इन प्रक्रियाओं को अपने पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि हमारी नयी पीढ़ी इनप्रक्रियाओं का फायदा उठा सके. आज के इस समय में वाही देश और वाही संगठन प्रगति कर सकते हैं जिनके पासबौद्धिक सम्पदा हो. हमारे पास अकूत बौद्धिक सम्पदा है परन्तु उसका रजिस्ट्रेशन और डॉक्यूमेंटेशन होना चाहिएताकि कोई और उसका अपने नाम रजिस्ट्रेशन न करवा ले.
श्री जगदीश चन्द्र बोस ने रेडियो की तरंगों की खोज १८९६ से पहले ही कर ली थी और उसका लोगों के सामनेप्रदर्शन भी कई बार किया. १९९६ और १९९९ में उन्होंने ही मार्कोनी को रेडियो सिग्नल की पूरी प्रक्रिया समझायी थी.स्वामी विवेकानंद ने जगदीश चन्द्र बोस को अपने अविष्कार को पेटेंट करवाने का आग्रह भी किया था लेकिन उसमहान वैज्ञानिक ने कभी पेंटेट के लिए अपने आविष्कार नहीं किये थे. उन्होंने अपने आविष्कार लोगों के लिए कियेथे और अतः इस तरफ उन्होंने कभी सोचा भी नहीं. बाद में इटली के मार्कोनी ने इस आविष्कार को पेटेंट करवा लियाऔर इसके लिए उनको नोबल पुरस्कार भी मिला.
कुछ लोग अपना स्वभाव नहीं बदलते. कहते हैं एक बिच्छू नदी में छटपटा रहा था. एक साधू ने उसको बचने कीकोशिश की. जैसे ही साधू ने उसको बचाना चाहा, उसने साधु को डंक मार दिया. वो फिर छटपटाने लगा. साधू ने फिरउसको बचने की कोशिश की उसने फिर डंक मार दिया. साधू बार बार कोशिश करता रहा और वो बार बार डंक मरतारहा. न साधु अपना स्वाभाव बदलने को तैयार न बिच्छू अपना स्वाभाव बदलने को तैयार. हम भारतीय भी अपनास्वाभाव बदलने को तैयार नहीं है. आज भी हमारे देश में अनंत ज्ञान बिखरा पड़ा है. अनेक प्राचीन संस्थाएं ज्ञान काभण्डार लिया हुए हैं और उस ज्ञान को विदेशी लोग ले जा रहे हैं और पेटेंट करवा रहे हैं लेकिन हम अपना स्वाभावबदलने को तैयार नहीं हैं. न हम पेटेंट करवाने को इच्छुक, न हम हमारे ज्ञान के व्यावसायिक उपयोग में इच्छुक. रहीसही हमारी सरकार भी ऐसी है की पेटेंट की प्रक्रिया को बहुत मुश्किल और जटिल बना रखा है ताकि कोई पेटेंटकरवाना भी चाहे तो मुस्किल हो जाए. भारत में पेटेंट के सिर्फ ८ ऑफिस हैं जबकि अमेरिका में ८०. भारत में पेटेंट केआवेदन की ऑनलाइन प्रक्रिया आज भी मुश्किल है और हिंदी भाषी व्यक्ति के लिए तो बहुत मुश्किल परन्तुअमेरिका में बड़ी आसान. चीन में वहां की भाषा मंदारिन में ही पेटेंट के लिए आवेदन होता है. आप समझ सकते हैंकी भारत सरकार आम भारतीय को पेटेंट की प्रक्रिया से जोड़ने में अभी भी उत्सुक नहीं हैं. आज भी शीर्षस्थनौकरशाह ये मानते हैं की पेटेंट तो बड़े बड़े वैज्ञानिक और शोध संस्थान ही करवा सकते हैं और इसी कारण वे आमभारतीय को पेटेंट की प्रक्रिया से जोड़ने में रूचि नहीं ले रहे. हकीकत यह है की एक आम भारतीय जो मेहनत औरमजदूरी करता है वह भी उतना ही वैज्ञानिक है और वह भी आविष्कार कर पेटेंट करवा सकता है. इसी प्रकार भारतके प्राचीन परम्परागत ज्ञान और शाश्त्रों में छुपे ज्ञान को भी व्यवस्थित रूप में लिपि-बद्ध कर के रजिस्ट्रेशन करवानेकी जरुरत है. पेटेंट, ट्रेडमार्क, डिज़ाइन के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया आसान करने से छोटे छोटे किसानों, मजदूरों औरव्यापारियों को भी इस प्रक्रिया से जुड़ने का मौका मिलेगा और उनको भी अपने ज्ञान को रजिस्ट्रेशन करवाने में मददमिलेगी. नेशनल इनोवेशन और हानि बी नेटवर्क द्वारा किसानो और मजदूरों के आविष्कारों के रजिस्ट्रेशन काअभिनव प्रयास अद्भुत है. उन्होंने ७०००० के करीब आविष्कारों को रजिस्टर कर लिया है. यह इस बात को इंगितकरता है की वाकई भारत एक अद्भुत देश है जो ज्ञान और तकनीक की एक अकूत सम्पदा है
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