Tuesday, December 30, 2014


शिक्षा जगत : असली चुनौती शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधन की 

जब मैं आईआईएम अहमदाबाद में था तो मुझे जिस चीज ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह वहां की बिल्डिंग या लाइब्रेरी नहीं थी परन्तु कुछ और था. मैं यह देख की प्रभावित था की वहां कार्य करने वाला चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भी बड़े ही सलीके से बात करता था. मैं तो यह देख के चकित था की वहां के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को भी अंग्रेजी आती थी और उसको भी मैनर्स और एटिकेट्स में दक्षता हासिल थी. मैं जब अपने पिताजी को फोन करता था तो यह बताते बड़ी ख़ुशी होती थी की यहाँ कार्य करने वाले छोटे से छोटे टाइपिस्ट से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है. परन्तु ऐसा हर शिक्षण संस्था में नहीं होता. शायद यही वजह है की हमें शिक्षण संस्थाओं से जो सम्बल मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है. 

आज के वक्त की समस्याओं और भूतकाल की समस्याओं में काफी फर्क है. आज अधिकांश समस्याएं मानवकृत समस्याएं हैं और उन समस्यायों का समाधान भी आसान है पर मानवीय जीवन मूल्यों की शिक्षण संस्थाओं की कमी के कारण ही चुनौतियां हैं. पहले न तो संसाधन होते थे न ही तकनीकी रूप से दक्ष लोग. आज संसाधन भी हैं और तकनीकी रूप से दक्ष लोग भी. आप चाहें गगनचुम्बी ईमारत बनाना चाहें या फिर अत्याधुनिक तकनिकी उपकरण - सक्षम लोगों की कमी नहीं है. कमी है तो उन लोगों की है जो जीवन मूल्यों के साथ जीना चाहते हैं. डाक्टर है पर गाव में जाने को तैयार नहीं. इंजीनियर व् वैज्ञानिक है परउनकी सोच और उनके कार्य बड़ी कंपनियों और बड़ी परियोजनाओं के लिए हैं आम आदमी के लिए नहीं.  आज सरकारें भी आम जनता की भलाई के लिए बजट में प्रावधान रख रही है और संसाधन भी मुहैया कर रही है लेकिन भ्रस्टाचार के डायनासौर के आगे साड़ी योजनाएं असफल हो जाती है. प्रश्न है की समाधान क्या है.  भविष्य में ये समस्याएं और भी ज्यादा बढ़ जाएंगी. दरअसल समस्या विद्यार्थी जीवन से ही जीवन मूल्य जीवन में उतारने की है.  दरअसल चुनौती है शिक्षा जगत की. शिक्षा  जगत  आज चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं नजर आ रहा है और इसी कारन हम सब का भविष्य भी दांव पर है. 

आज हमारे प्रधान मंत्री महोदय की पहल पर स्वछता अभियान चलाया जा रहा है. यह बेहतरीन शुरुआत है. साफ़ सफाई के लिए हमारे संस्कार बचपन से ही डाले जाने चाहिए. साफ़ सफाई और स्वछता के लिए पहल स्कुल और कॉलेज से ही शुरू हो जानी चाहिए. आप किसी भी होटल या किसी भी अच्छे कार्यालय में जाइये, आपको वहां पर बेहतरीन अनुशाशन, साफ़ सफाई और कार्य व्यवस्था मिलेगी. आप किसी होटल में जाइये उसके कमरों और उसके शौचालय की सफाई देखिये आपको उसमे साफ़ सफाई नजर आएगी. लेकिन अफ़सोस है की अधिकाँश स्कुल और कॉलेज में आपको साफ़ सफाई और स्वछता के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं नहीं मिलेगी. कई स्कूलों और कॉलेजों में तो आप को पर्याप्त शौचालय भी नहीं मिलेंगे. विद्यार्थियों को साफ़-सफाई और स्वछता के संस्कार तभी मिलेंगे जब वे ये सब अपनी शिक्षण संस्थाओं में देखेंगे. मैंने कई शिक्षण संस्थाओं को देखा है जिनमे संस्था के शीर्षस्थ व्यक्ति भी तम्बाकू और इस प्रकार के पदार्थों का उपयोग करते हैं और इधर उधर पीक थूकते रहते हैं. ऐसी संस्थाओं में विद्यार्थी भी दीवारों पर पीक थूकते नजर आ जायेंगे. आप ही सोचिये कैसे बढ़ेगा हमारा स्वछता अभियान. असली चुनौती शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधन को सुधरने की है. अधिकांश शिक्षण संस्थाओं का प्रबंधन ऐसे लोगों के हाथ में हैं जो शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधन में दक्ष नहीं है. शिक्षण संस्थाएं ऐसे लोगों ने खोली है जो समाज के लिए कुछ अच्छा कर के अच्छा नाम कामना चाहते हैं. यह अच्छी बात है. परन्तु वे लोग जैसे अपनी फैक्ट्री या दूकान चलते हैं वैसे ही शिक्षण संस्थाओं को चला रहे हैं और कई बार तो उससे भी बदतर ढंग से चला रहे हैं. निजी क्षेत्र की शिक्षण संस्थाओं को सुधरने के लिए उनके  संस्थापकों को शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधन में दक्ष करने की जरुरत है. इस तरफ कोई प्रयास नहीं हो रहा है. शिक्षकों को लगातार प्रशिक्षण दिया जा रहा है लेकिन जो लोग इन संस्थाओं को चला रहें हैं उनके प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं हैं. शिक्षकों के लिए बी.एड. जैसे पाठ्यक्रम हैं लेकिन बाकी स्टाफ की योग्यता और प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं हैं. 

निजी क्षेत्र की अधिकांश संस्थाओं को सोसाइटी या ट्रस्ट चलते हैं. इन संस्थाओं का प्रबंधन वर्षों पुराने कानूनों और व्यवस्थाओं के तहत होता है. इनसे सम्बंधित सरकारी विभाग भी किसी मार्गदर्शक की भूमिका निभाने की जगह पग पग पर बाधा बिछाने का कार्य करते हैं.अधिकांश  संस्थाओं का प्रबंधन पुराने तंत्र के व् पुरानी सोच रखने वाले लोगों के हाथ में होता है. उनको न तो नै तकनीक की समझ होती है और न ही वे नए लोगों को मौका देना चाहते हैं.  जो शिक्षण संस्थाएं अपने शिक्षकों को ही सम्मान नहीं दे पाती वे समाज में चेतना और जाग्रति फ़ैलाने का काम कैसे करेंगी? 

शिक्षण संस्थाओं की व्यवस्था संचालन में सिर्फ शिक्षकों का हाथ नहीं होता है. कई प्रकार के अन्य लोग भी जुड़े होते हैं. लेकिन उनके के प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं हैं. आज की शिक्षण संस्थाएं भविष्य निर्माण के मंदिर हैं. परन्तु इन मंदिरों के संस्थापक स्वयं इन मंदिरों में श्रद्धा और विश्वास नहीं रखते हैं तो फिर किस से उम्मीद करें हम? जितना जल्दी हम शिक्षण संस्थाओं का कायाकल्प करेंगे उतनी जल्दी हम अपने भविष्य की चुनौतियों केलिए तयारी शुरू करेंगे और अपनी समस्याओं का समाधान करेंगे. आईये मिल कर शुरुआत करते हैं. 

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