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असली दिवाली कोसों दूर
दिवाली मतलब जश्न, ख़ुशी, साफ़-सफाई, आपसी प्रेम. हर दिवाली आप अपने घर का कायाकल्प कर डालते हैं. क्याहम सबको सम्बल प्रदान करने वाले तंत्र - हमारे अपने सरकारी तंत्र में भी दिवाली आएगी. उसके लिए सिर्फ स्वछताअभियान से पार नहीं पड़ेगा. आज कोई डॉक्टर बन रहा है, कोई इंजीनियर, पर देश को असली जरुरत तो उनलोगोंकी है जो देश को नयी व्यवस्था निर्माण में मदद कर सके. कुछ ऐसे लोग जो देश की खस्ता हाल व्यवस्था को सुधारकर देश को एक बेहतर तंत्र प्रदान कर सकें. सरकारी तंत्र आज इतना खस्ता-हाल है की इसकी मरम्मत नहीं एककाया कल्प की जरुरत है. परन्तु इस कायाकल्प की तयारी करने वाला कोई नहीं हैं.
कहाँ है रौशनी
कहते हैं की दिवाली एक ऐसा त्योंहार है जब हर व्यक्ति दिए जला कर खुशियों का स्वागत करता है और हर तरफप्रकाश ही प्रकाश नजर आता है. दिवाली तभी संभव है जब हर घर में उजाला हो व् खुशियां हो . उजाले के लिए क्याचाहिए? बिजली. खुशियों के लिए क्या चाहिए? अपनापन. आज हर तरफ इन दोनों की कमी है. तमाम सरकारीदावों के बावजूद आज भी आधारभूत सुविधाओं में हम बहुत पीछे हैं. अहमदाबाद में एक मिनट के लिए बिजली नहींजाती लेकिन राजस्थान के गाव में बिजली की कोई निष्टिचत्त नहीं हैं. बिजली कब आएगी और कब जायेगी कुछ भीनिश्चित नहीं है. सरकारी अस्पतालों में बिजली के आभाव में मरीजों की क्या दशा होती है कुछ भी कहने की स्थितिनहीं हैं. आज अगर सबसे मुश्किल दौर में कोई होता है तो वे होते हैं डॉक्टर्स जो एक तरफ मरीज को देखते हैं तोदूसरी तरफ बिजली को - क्योंकि कब बिजली गुल हो जाए - पता नहीं?
डर डर कर जीता हर इंसान
चाहे आप रेल से यात्रा करें या आप बस से यात्रा करें - हर तरफ चेतावनी नजर आएगी - "अपरिचित व्यक्ति सेसावधान रहें? - न जाने कहाँ आतंकवादी छुपा हो " एक समय था जब आप अपरिचित लोगों से भी आसानी से दोस्तीकर लेते थे - आज हर व्यक्ति से आप दर दर कर कदम बढ़ाते हैं. हर व्यक्ति में डर पैदा कर के आज आप एक ऐसीव्यवस्था बना रहें हैं जिसमे व्यक्ति अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रहा है. शायद आतंकवादी भी यही चाहते थेकी हर व्यक्ति में दर पैदा हो जाए.
पटाखे ही पटाखे - सभी फुस
दिवाली में हर तरफ लोग पटाखे छोड़ कर अपनी खुशियां जाहिर करते हैं. आज सिर्फ पठाके बचे हैं खुशियां गायब होचुकी हैं. कहीं महगाई, कही कमजोर सरकारी तंत्र, कहीं भ्रस्टाचार कहीं बेरोजगारी लोगों की नींद उड़ा रही है. सरकाररोज एक नयी योजना घोषित करती है - वह पटाखे जैसा धमाका लगती है लेकिन दो दिन में ही पता चल जाता है कीवह भी एक फ्लॉप स्कीम है.
आंदोलन ही आंदोलन - परन्तु असली
हर कॉलेज, हर संस्था, हर दफ्तर किसी न किसी आंदोलन की चपेट में हैं. कहीं हड़ताल है तो कहीं असंतोष. जरुरत हैकी फिर से एक मजबूत व्यवस्था के लिए जन-आंदोलन हो. श्री मनुभाई शाह और अन्य लोगों ने ग्राहक सुरक्षा केलिए आंदोलन किया तब ग्राहक सुरक्षा के लिए एक नया कानून बना. अरुणा रॉय आदि ने सुचना के अधिकार केलिए आंदोलन किया तब सुचना के अधिकार का कानून बना. इसी प्रकार अब आंदोलन चाहिए जो लोगों को मुलभुतसुविधाएँ दिल सके और उसके लिए एक व्यवस्था बना सके.
कानून जो जनता की अपनी आवाज हों
रामराज्य की असली खासियत थी न्याय व्यवस्था. सही और त्वरित न्याय व्यवस्था जरुरी है. पिछले मुख्यन्यायाधीश कहते रह गए की न्यायव्यवस्था को आवश्यक सेवाओं में शामिल करिये और न्यायलय रोज खुलनेचाहिए २४ * ७ की सेवाओं की तरह. जब तक ये बड़े सुधर नहीं होंगे - हम सब तरसते रह जाएंगे.
सरकार को पता है की अधिकांश कानून बहुत बड़े और पेचीदे हैं. इन कानूनों में सुधार की जरुरत है. इस हेतु प्रयासभी हो रहें हैं. हाल ही मैं कम्पनी कानून को बदला गया - करीब ६५० धाराओं की जगह पर करीब ४५० धाराएं कर दी . क्या फायदा. असली फायदा तब होगा जब कानून बनाने वाले लोग सरकारी तंत्र से नहीं बल्कि आम आदमी होंगे.काश सरकार उद्योग जगत से कहती की आप कम्पनी कानून का मसौदा बनाओ और फिर एक ऐसा कानून बन करआता जिस को अमल में लाने के लिए उद्योग जगत कृतसंकल्प होगा. हर क्षेत्र में ऐसे ही सुधार की जरुरत है. .
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