Tuesday, December 30, 2014

कैसे बदले खेलों के क्षेत्र में हमारा स्कोर

राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन करने वाली भारतीय टीम ने आज हमें फिर से खेल-कूद को प्रोत्साहन देने के लिए  मजबूर कर दिया हैहमारे देश में खेल-कूद को उतना प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा है जितने प्रोत्साहन कीजरुरत हैशुरुआत स्कूलों से ही होती हैसिर्फ टाईमटेबल में खेल-कूद का समय डालने या पीटीआई की नियुक्ति मात्र से हम अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभा पाएंगेक्या स्कूलों में वाकई खेल-कूद के लिए माहौल हैक्याविद्यार्थी खेल-कूद के लिए भी उतनी ही एकाग्रता से तैयारी करता है जितनी की परीक्षा की करता हैक्या स्कूल में खेल-कूद के निष्णात व्यक्तियों को बुलाया जाता है और उनसे विद्यार्थियों को मार्गदर्शन प्रदान किया जाताहै?
खेलों को बढाने में कोच व् ट्रेनर्स का वही योगदान होता है जो शिक्षा को बढ़ावा देने में शिक्षक का होता हैस्कूलों व् कॉलेजों को कोच व् ट्रेनर्स से संपर्क कर के उनसे स्कुल में विशेष शिविर लगाने हेतु अनुरोध करना चाहिए.अगर स्कुल में खेल का मैदान नहीं हो तो भी कोई बात नहींयह शिविर किसी भी स्टेडियम या खेल मैदान में आयोजित किया जा सकता हैआज के समय में अच्छे स्टेडियम और खेल मैदान बनाना और उनको बनाये रखनाबड़ा मुश्किल काम हैलेकिन अगर इस प्रकार के मैदान पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में बनाये जाते हैंतो इन का निर्माण व् रख-रखाव दोनों बड़ी आसानी से हो जाएंगेइस प्रकार हमारे देश की एक बड़ी समस्या दूर होजायेगी
गावों के बच्चे बहुत ही दम ख़म वाले होते हैंवे खेतों में काम कर के अपने आप को परिस्थितियों  के अनुकूल बना सकते हैं और किसी भी परिस्थिति में ढल सकते हैंप्रशिक्षण व् मार्गदर्शन से ये बच्चे राष्ट्रीय व् अंतर्राष्ट्रीयखेलों में नाम कमा  सकते हैंमेरी कॉम की कहानी सबके सामने हैंमेरी कॉम ने अपना बचपन जंगल में लकड़ियाँ काटने व् परिवार को मदद देने के लिए जरुरी काम करने में बितायालेकिन इन सब में वह इतनी मजबूत बनगयी की बॉक्सिंग जैसे खेल में उसको आगे बढ़ने में समय नहीं लगा.
हमारी यह मज़बूरी है की हम लोगों को ज्यादातर खेलों की कोई समझ ही नहीं हैहम सिर्फ क्रिकेट को समझते हैं बाकी खेलों की कोई जानकारी भी नहीं हैंअतः स्कूली दिनों से ही बच्चों में खेल-कूद की समझ पैदा करनीजरुरी हैविविध प्रकार के खेलों की जानकारी प्रदान करने से हम को विद्यार्थिओं में खेलों की समझ पैदा करने में सुविधा होगीहमें इस हेतु प्रयास करने होंगेहालाँकि क्रिकेट अच्छा खेल हैलेकिन अगर आप बाकी खेलों सेतुलना करेंगे तो पाएंगे की बाकी खेल क्रिकेट से काफी ज्यादा अच्छे हैंक्रिकेट आज हर बालक खेल लेता हैपरन्तु बाकी खेलों को खेलने के लिए व्यवस्था नहीं हैंजब तक आप बाकी खेलों का लोकल संस्करण तैयार नहींकरेंगेवे लोकप्रिय नहीं होंगे.
हर स्कुल व् कॉलेज को प्रयास करना चाहिए की खिलाडियों को आमंत्रित करें और उनसे विद्यार्थिओं को प्रशिक्षण देने के लिए अनुरोध करेंइस प्रकार खिलाडियों को भी एक रोजगार का साधन मिल जायेगे और विद्यार्थिओंको अच्छा प्रशिक्षकआज देख के ताज्जुब होता है की बीकानेर जैसे शहर में ऐसे लोग हैं जिन्होंने एसिआड़ में सयकलिंग में भाग लिया था लेकिंग उनको बीकानेर के किसी भी स्कुल ने आमंत्रित नहीं किया और उनकी प्रतिभाका कोई उपयोग नहीं हुआश्री शंकर लाल हर्ष जी जैसे बहुत कम होते हैं जो अपने प्रोफेशन की प्राथमिकताओं को दरकिनार कर खेलों को बढ़ावा देने के लिए जी-जान से लग जाते हैं.
प्राचीन भारत में हर शहर में व्यायाम शालाएं होती थीउन व्यायाम शालाओं में सिर्फ कुश्ती ही नहीं बल्कि स्वस्थ रहने की परिपूर्ण शिक्षा दी जाती थीयह प्रशिक्षण उनके पुरे जीवन में काम आता थाइस प्रकार की शिक्षणसंस्थाओं की समाप्ति के साथ ही भारत का खेल-कूद में स्वर्णिम युग समाप्त हो गयाहॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद भी बचपन में कभी हॉकी नहीं खेले थे लेकिन उन्होंने व्यायाम-शाला में प्रशिक्षण जरूर लिया थाउसशुरूआती प्रशिक्षण का फायदा उनको पुरे जीवन-भर मिला.
खेलों को बढ़ावा देने के लिए में निम्न १० बिंदू  प्रस्तुत करना चाहता हूँजिन को आप भी बढ़ावा देंगे तो मुझे ख़ुशी मिलेगी.
1. खेल-कूद को मार्क-शीट का हिस्सा बनायें
भारत में हर चीज को नंबरों व् डिग्रियों से जोड़ा जाता हैअतः यहाँ जब तक हम खेल-कूद को भी पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बनाएंगेतब तक हमें सफलता नहीं मिलेगीअतः हमें सबसे पहले इस हेतु खेल-कूद को मार्क-शीट काहिस्सा बनाना पड़ेगा और उसके लिए नंबर तय करने पड़ेंगे जो की विद्यार्थी के कुल अंकों में जुड़ेंइससे हो सकता है की कई ऐसे विद्यार्थी भी मेरिट में आने लग जाएँ जो सिर्फ खेल-कूद में अव्वल हैंखेल-कूद में सफलता भीतो व्यक्ति के भावी जीवन को प्रभावित करती हैं और उसकी कार्य-दक्षता को परिभाषित करती है.
2. महिलाओं के लिए अगल से व्यवस्था हो
हमारे विश्व-विद्यालय में बालीबाल व् कबड्डी जैसे खेलों में छात्राओं  की अलग टीम्स हैंलेकिन हर स्कुल और कॉलेज में ऐसा नहीं होता हैंकई छात्राएं खेल नहीं पाती है क्योंकि छात्राओं  के लिए अलग टीम नहीं होती  है.अतः हर स्कुल व् कॉलेज को इस और ध्यान देना चाहिए.
3. खेल-कूद के लिए प्रोफेशनल ट्रेनर को स्कूलों व् कॉलेजों में आमंत्रित किया जाये.
4. सभी स्टेडियम व् खेल मैदान सबके लिए खुले हों
हर स्कुल व्  महाविद्यालय हर खेल के लिए अलग स्टेडियम नहीं बना सकता हैकई खेलों को मैंने अपने जीवन में कभी नहीं खेला  क्योंकि उनका खेल मैदान और खेल के सामान  नहीं मिलते हैं.
5. समूह-आधारित खेलों को सर्वोच्च प्राथमिकता देवें.
6.  सिमित संसाधनों का (सिमित समय में में आपसी तालमेल सेअसीमित सदुपयोग कर खेलों को लोकप्रिय बनायें इथिओपिए के अबेबे बिकिला से सीख लेवें  श्री अबेबे बिकिला एक गरीब देश में रहते हुए भी दो बारओलंपिक्स के गोल्ड मेडल जितने में सफल हुएजब वे ओलंपिक्स में दौड़े तो वे बिना जूतों के दौड़ेउनसे जब पूछा गया तो उन्होंने बताया की उन्होंने अपने देश में ऐसे ही दौड़ कर तैयारी  की हैउन्होंने एक बात साबित करदी की खेल-कूद में सफलता के लिए संसाधनों से ज्यादा जरुरी है इच्छा शक्ति कीबिना किसी संसाधनों के श्री अबेबे जब दो बार ओलंपिक्स में मेराथन में गोल्ड मेडल जीत सकते हैं तो हम तो उनसे सीख ले कर बहुत कुछ करसकते हैंहमें यह बात मान लेनी चाहिए की संसाधनों की कमी नहीं अपनी इच्छा शक्ति की कमी से हम हार रहें हैं.
7. नए-नए खेलों के रोमांच से जोड़ें हमारे विद्यार्थिओं को
अक्टूबर २०१२ में बहुत ही अल्प  तैयारी कर के हमारे विश्व-विद्यालय के १०१ विद्यार्थियों ने एक दूसरे के साथ टांग से टांग बांध कर (तीन टांग दौड़ की तरहसमूह दौड़ का एक नया कीर्तिमान बनायाजब वे साथ में दौड़लगा रहे थे तो उनका उत्साहजोशआपसी तालमेल देखते ही बनता थाउनको एक मुश्किल कार्य करने में जो आनंद आया और उस प्रक्रिया में वे जो सीख पाये वह सब अद्वितीय थाहमें मानना पड़ेगा की विद्यार्थियों मेंअद्वितीय उत्साह व् कार्य-क्षमता हैउनको सिर्फ प्रोत्साहित करने व् मार्गदर्शन देने की जरुरत है.
8. गावों के कार्य खेलों के रूप में विकसित करें
राजस्थान के गाव-गाव में बच्चे ऊँठ दौड़ाना  जानते हैं आदि आदि इनको खेलों के रूप में शुरू किया जाए तथा इनका आयोजन होना चाहिएजो कार्य यहाँ के धोरों में हमारे बालक करते हैंउनको एक खेल के रूप मेंविकसित किया जा सकता है.
9. पुराने खेलों को भी बचाइये
जब हम छोटे थे तो कई ऐसे खेल थेजो आज लुप्त हो गए हैं जैसे सतोलियाइन खेलों को भी परिष्कृत कर के बचाया जा सकता हैक्या पता ये ही खेल बाद में विकसित हो कर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल का स्वरुप ले लें.
10. खेलों का वार्षिक आयोजन हो
हर शिक्षण संस्था को चाहिए की खेलों का साल में  या  वार्षिक आयोजन करेइस आयोजन को सिर्फ औपचारिकता नहीं बल्कि पूरी तयारी के साथ आयोजित करेहर विद्यार्थी किसी  किसी खेल में जरूर भाग लेवेनएनए खेलों को प्रोत्साहित किया जाएहमारे विश्व-विद्यालय में खेलों से सम्बंधित दो स्पर्धाएं होती हैजिसका आयोजन स्वयं विद्यार्थी मिल कर करते हैंइस प्रक्रिया में विद्यार्थी बहुत कुछ सीखते हैं और खेल -खेल में वोसीख जाते हैं जो हम उनको पांच साल में भी नहीं सिखा सकतेबीकानेर में अजित फाउंडेशन नामक संस्था हर वर्ष शतरंज प्रतियोगिता आयोजित करती हैश्री शंकर लाल  हर्ष ने इस प्रतियोगिता को लोकप्रिय बनानेके लिए स्कूलों से विद्यार्थियों को आमंत्रित कियाआज विद्यार्थी बड़े चाव से इस का इंतजार करते हैंयह एक ऐसी कहानी है जो यह साबित करती है की अगर आप प्रयास करते हैं तो फिर खेल कूद की शहर परआधारित प्रतियोगिताएँ भी राष्ट्रिय व् अंतररस्तरीय स्तर की हो सकती है.


खेल खेल में खेल खिलाएं,
जीवन जीवट जीकर जताएं
अनुशासन का पाठ पढ़ाएं
सामंजस्य का मन्त्र सिखाएं
आपसी ताल मेल से
सब को मिल कर एक बनायें
जीवन को जीने का तरीका
जीवन को जी कर सिखलाएं
हर हार को जीत में बदलें
हर हाल में सीख  के जाएँ
स्वस्थ रहेंस्वास्थ्य सुधारें
मस्त जीवन शैली अपनाएं

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