Tuesday, December 30, 2014

१०० दिन की स्कूलों में खोज एक पाठशाला की

२४ जुलाई २०१४ बीकानेर के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन थाइस दिन बीकानेर के बिरले व्यक्तित्वसच्चे मानव-सेवकधन्वन्तरि के अवतार  कर्मयोगी  डॉक्टर विजय बोथरा की प्रथम पुण्य-तिथि थीजिसप्रकार से उनको श्रद्धांजलि दी गयी वह अपने आप में एक मिसाल हैचूँकि डॉक्टर बोथरा पुरे जीवन लोगों की मदद करने में लगे रहेअतः उनकी याद में रक्त दान शिविर का आयोजन किया गयाउनके लिए श्रद्धांजलि कायह कार्यक्रम शाम को .३० बजे रखा गयाताकि हर व्यक्ति अपने कार्य के बाद में इस कार्य में शरीक हो सकेकार्यक्रम की सूचना भी सोशल मिडिया के माध्यम से दी गयी ताकि अधिक से अधिक व्यक्तियों को जानकारीपहुँच सके.  यह एक बहुत खूबसरत पहल हैकाश हम इस प्रकार की पहल पुरे देश में लागू कर सकेंजिस दिन गांधी जी की जयंती हो उस दिन गांधी जी के विचारों को अपने जीवन में लागु करने का प्रयास करें (छुट्टी  नहींमनाएं), जिस दिन अम्बेडकर जी का जन्म दिन हो उस दिन जाती प्रथा के खिलाफ कदम उठायें व् कुछ इस प्रकार का कार्य करें की जिससे उनके उद्देश्यों की तरफ हमारे कदम बढ़ें (हम छुट्टी नहीं मनाएं).
आज  आप लोगों को कहते हुए सुनेंगे की  "नई पीढ़ी में कार्य के प्रति जूनून नहीं है", "नई  पीढ़ी में छुट्टी लेने की मनोवृति ज्यादा है". आदि आदि ...इस की चर्चा करने से पहले हमें हमारे शिक्षा तंत्र पर दृष्टि डालनीचाहिएशिक्षा व्यवस्था कोई मैकेनिकल व्यवस्था नहीं परन्तु एक सांस्कृतिक व्यवस्था हैसंस्कृति सिखाई नहीं जाती है परन्तु जीवन में अपने आप आती हैहम जो देखते हैंजो सुनते हैंजो चर्चा करते हैंवही हमारे लिएसंस्कृति की पाठशाला  हैशिक्षा व्यवस्था को यही बात समझनी है.
अमेरिका की एक वैज्ञानिक सुसान सैवेज २० वर्षों से कांगो में पाये जाने वाले वनमानुस बोनोबोस पर अध्ययन कर रही हैबोनोबोस चिम्पांजी की तरह ही दीखते हैंसुसान के साथ रह कर ये वनमानुस आज अंग्रेजीसमझ जाते हैंकम्प्यूटर पर गेम खेल लेते हैंकुछ सीमा तक कार भी चला लेते हैंआज ये सुसान के कहे अनुसार कार्य करते हैंअपनी शोध के आधार पर सुसान ने यह साबित किया की इन जानवरों को अंग्रेजी सिखाने  केलिए उनको पढ़ाने की जरुरत नहीं हैं परन्तु उनके आस पास अंग्रेजी में संवाद करने की जरुरत हैये जानवर जो सुनते हैंजो देखते हैंवो तुरंत सीख लेते हैंशायद हम को भी सुसान से सीख लेनी पड़ेगीहम जो विद्यार्थियों कोपढ़ा रहें हैंविद्यार्थी वह नहीं सीख रहेविद्यार्थी वह सीख रहें हैं जो हम कर रहें है.
आज हम स्कूलों  कॉलेजों में सिर्फ छुटियों को योजना बना रहें हैंकार्य करने में हमें आनंद नहीं आता हैहमारी पिछली पीढ़ी महीने में सिर्फ एक दिन छुट्टी मनाया करती थी (अमावस्या की छुट्टी ), उनके लिएत्योंहार छुट्टी का दिन नहीं होता थापरन्तु उस अवसर पर वो और भी ज्यादा कार्य करते थेहोलीदिवालीसंक्राति आदि पर हर व्यक्ति अपना कार्य करने के पश्चात त्योंहार की तयारी करता थात्योंहार को मनाने मेंउल्लास तभी आता था जब ज्यादा कार्य किया जाता थादरअसल पूरा भारत उद्यमिता प्रधान था तथा हर व्यक्ति अपने पेशे में इतना तल्लीन रहता था की उसको त्योंहार एक ऐसे अवसर जैसा लगता था जब वह अपने पेशेमें कुछ नया कर सकता था या कुछ निखार ला सकता थायही वह अवसर था जब वह अधिक से अधिक लोगों से मिल सकता था और आज की भाषा में कहें तो वह "नेटवर्किंगकर सकता थाहमारी पीढ़ी में हर सप्ताह में एकछुट्टी की परंपरा आईसारे त्योंहार छुटियाँ बन गएहमारी अगली पीढ़ी के लिए सप्ताह में दो छुट्टियां आएँगी (सरकारी महकमों में तो  भी गयी है). इसके आलावा त्योंहारोंपुण्य तिथियोंजन्म तिथियोंशहीद दिवसों,आदि-आदि के नाम पर करीब ६०-७० छुट्टियां और मिल जाएंगीहमें जब मौका मिलता हैहम हड़ताल करने के लिए तैयार रहते हैंएक स्कुल या एक कॉलेज पुरे साल भर में १०० दिन ही काम करेंगीहम कक्षा में पढ़ाएंगे किखूब मेहनत करनी चाहिएखूब परिश्रम करना चाहिएविद्यार्थी हमसे क्या सीखेगा -  आप ही सोचेंजब मैं कॉलेज में पढता थातब देखता था की ज्यादातर विद्यार्थी अपने घर के व्यापरया कार्य में सहयोग करते थेऔर कॉलेज के समय के बाद रोज - घंटे अपने पैतृक धंधे में कार्य करते थेआज समय बदल गया हैबच्चों से कार्य करवाना पुराने ज़माने की बात समझी जाती हैआज विद्यार्थी कॉलेज के बाद अपने समय को सिर्फ पार्टी मौज मस्ती में लगाता हैजो विद्यार्थी आर्थिक विपन्नता के दौर से गुजर रहें हैवे भाग्यशाली हैं क्योंकि वे अपना समय दूसरे विद्यार्थिओं को पढ़ाने या किसी पार्ट-टाइम नौकरी में बिताते हैंयह समय का सही उपयोग है.वे कुछ अच्छा सीख रहें हैं.
आज देश में सबसे बड़ी समस्या है की सरकारी कार्यालय तो ज्यादातर समय या तो बंद मिलते हैं या उनमे कोई काम नहीं होताकभी चुनाव का बहाना मिल जाता हैतो कभी मुख्य-मंत्री की यात्रा का बहाना मिलजाता हैकुल मिला कर काम नहीं होतायही हाल स्कूलों  कॉलेजों में भी हो रहा हैइसी कारण इन स्कूलों  कॉलेजों से विद्यार्थिओं का मोह भंग हो रहा हैआईआईएम जैसी श्रेष्ठतम शिक्षण संस्थाओं में दिवाली के दिनभी पढाई होती हैंविद्यार्थियों के लिए कोई छूटी नहीं होतीशनिवार  इतवार को कक्षा में पढाई नहीं होतीपरन्तु विद्यार्थियों को इतने असाइनमेंट (होम वर्क)”  मिल जाते हैं की उनको समय ही नहीं मिल पतायहीकारन है की उन शिक्षण संस्थाओं का आज बड़ा नाम हैआज गावों और शहरों के बच्चे अपने शहर को छोड़ कर दूर जा कर पढ़ना चाहते  हैं क्योंकि वे अपने आप को एक आईआईएम जैसे माहोल में ढालना चाहते हैंक्याहमारे शहर की शिक्षण संस्थाएं अपने आप को सुधार नहीं सकतीआज भारत का नन्हा बालक विदेश जाना चाहता है क्योंकि आज वहां कार्य की संस्कृति हैं और हर व्यक्ति मेहनत करता हैहमारा बालक भी मेहनती बननाचाहता हैक्या हमारे शहर की संस्थाएंसंगठन सरकारी विभाग अपने आप को बदल नहीं सकतेक्या करें की हमारे  लाडलों को हमारे  शहर से मोहब्बत हो जाएक्या करें की हमारे लाडलों को हमारी शिक्षण संस्थाओं परनाज हो और वे गर्व से कहें के हम यहाँ पढ़ते हैंक्या करें की १०० दिनों की स्कूलों को ३६५ दिनों की स्कूलों में बदल डालेंसमाधान हम लोगों को ही खोजना हैहम जो थे वो आज हम नहीं हैहमें फिर से अपने आप को खोजनाहै.

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