Tuesday, December 30, 2014

नमन ऐसी पाठशाला को - जहाँ संवाद हो
(एक नई सोच की पाठशाला के लिए कुछ सुझाव)

हर अगली पीढ़ी ज्यादा बुद्धिमानतार्किकचतुर  तकनीक में माहिर होती हैउनकी इस प्रगति के साथ ही एकसमस्या भी आती हैहर अगली पीढ़ी समाज से दूर होती जा रही हैउसमे  देश और समाज के लिए कुछ करने काजज्बा नहीं हैविद्यार्थिओं की नीव होती है शुरुआत की शिक्षाजरुरत है नीव में कुछ बदलाव किया जाय
पाकिस्तान सरकार के शिक्षा विभाग ने एक पहल की है जिससे हम भारत वासी कुछ सीख सकते हैंउन्होंने स्कूलोंके पाठ्यक्रम में  सामाजिक उद्यमी (सोशल एन्त्रेप्रेंयूर्स  Social Entrepreneurs) की कहानिया जोड़ दी हैइसीप्रक्रिया में  अब्दुल सत्तार  इधि की कहानी भी जोड़ दी हैउन्होंने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि इससे विद्यार्थियों कोसमाज के लिए कुछ अच्छा करने की  प्रेरणा मिलेश्री   इधि   एक बेमिसाल व्यक्तित्व हैजहाँ पर भी कोई आपदा,दुर्घटनाया त्रासदी होती हैवे वहां पर अपनी टोली के साथ पहुँच जाते हैंवे वाकई में जिन्दा पैगम्बर हैंऐसे लोगोंकी कहानी अगर पुस्तकों में आती है तो इससे विद्यार्थिओं को प्रेरणा मिलेगी और वे एक बेहतरीन व्यक्ति के रास्तेपर चलने की प्रेरणा लेंगेएक अच्छी बात यह है की श्री   इधि   अभी भी  सक्रीय  हैं अतः विद्यार्थी उनसे मिल भीसकते हैं और उनके कार्य को देख सकते हैंकिसी जीवित पैगम्बर से मिलना किसी भी विद्यार्थी के लिए एकअद्वितीय अनुभव होगा.
कक्षा  तक की पढाई बहुत महत्वपूर्ण होती हैयही हमारे जीवन की दिशा  हमारा दृष्टिकोण तय कर देती हैक्यापढ़ाया जाय तथा कैसे पढ़ाया जाययह बहुत महत्वपूर्ण होता हैइस को समझना जरुरी है क्योंकि हम हमारे भविष्यका निर्माण इसी से करते हैंमैं व्यक्तिगत रूप से कक्षा  तक इतिहास (जैसा की अभी पढ़ाया जाता है)  पढ़ाने केपक्ष में नहीं हूँमैं यह सोचता हूँ की ८वि तक की पढाई में बालकों में सिर्फ सकारात्मक सोच पैदा करने वाले  समाजके सकारात्मक पहलु को प्रदर्शित करने वाले विषय ही होंविषयों की संख्या ज्यादा नहीं हो परन्तु चर्चा पर जोर हो.जोर इस बात पर नहीं हो की कितनी ज्यादा पुस्तकें पढाई जायेपरन्तु इस बात पर हो की समाज  देश के विकासमें बेहतरीन योगदान देने वाले लोगों की कहानिया हो  विज्ञानंगणित संवाद - कला में विद्यार्थियों को पारंगतबनाया जाये.
हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम जी ने एक बेहतरीन पहल की हैं  - -  वे स्वयं स्कूलों में जाया करते हैं.  तथाविद्यार्थिओं से संवाद करते हैंवे विद्यार्थिओं को प्रोत्साहित करते हैं और उनसे रूबरू हो कर बात करते हैंउनकोएक बेहतरीन भविष्य के सपने दिखाया करते हैंउनका प्रसिद्ध वाक्य है : "सपने देखो जो आपको सोने  दें. ... "
विद्यार्थी सपने देखते हैंउनके सपने ही उनके भविष्य का निर्माण करते हैंहम जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं हमारेसपने कम होते जाते हैंविद्यार्थी के सपने इस बात पर निर्भर करते हैं की उसको क्या बौद्धिक खुराक मिल रही है.उसके विचारों का निर्माण स्कुल  घर के माहोल से होता हैविद्यार्थी को अगर बेहतरीन सोच परोसी जाएगीतोउसके पास देखने के लिए बेहतरीन सपने होंगे.
हर विद्यार्थी एक अलग प्रतिभा  एक अलग सोच ले कर आता हैउसको एक यूनिफार्म पहना कर  एक पाठ्यक्रममें ढाल कर हम एक जैसा नहीं कर सकते.   शिक्षक अपना कोर्स पूरा करने की चिंता में रहता हैमिडिया देश विदेशमें फैले भ्रष्टाचार की कहानिया बयां करते हैंघर-परिवार में महंगाई  के माहौल में आदर्श की कोई बात कर ही नहीं सकताटीवी सीरियल में विदेशी संस्कृति  भौतिकता का नग्न प्रदर्शन हैविद्यार्थी को खुल कर बात करने के लिए अपना मन लगाने के लिए ये ही सब तो हैफिर इस सब के बाद विद्यार्थी समाज के लिए कुछ करने के सपने कहाँसे देखेगा.  बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होयमें यह सुझाव देना चाहता हूँ की कम से कम आधा पाठ्यक्रमस्कुल स्वयं तय करे ताकि एक ऐसी पढाई हो जिसमे विद्यार्थी को मजा आये तथा आस पास की परिस्थिति से वहउस पढाई को जोड़ सके.  स्कुल अपने आस पास की सफलता की कहानियों को अपने पाठ्यक्रम का भाग बना सकताहैहर स्कुल को प्रयास करना चाहिए की वह किसी  किसी सामाजिक उद्यमी (सोशल इंटरप्रेन्योर)  या किसीकलाकार या साहित्कार या वैज्ञानिक को विद्यार्थीओ के साथ संवाद के लिए बुलाये तथा उसकी कहानी को अपनेपाठ्यक्रम में शामिल करेंहर शहर में बेहतरीन सामाजिक उद्यमी ( सोशल एन्त्रेप्रेंयूर्स)साहित्यकार  कलाकार हैंहर शहर में ऐसे लोग हैं जो समाज के लिए अनूठा कार्य कर चुकें हैंउन्हें कोई प्रसिद्धि नहीं चाहिएउनको कोईपद नहीं चाहिएऐसे लोगों को स्कूलों में बुलाना चाहिएऐसे लोगों की कहानियों को स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए.
स्कूलों में पढाई के तरीके में भी बदलाव लाना चाहिएविद्यार्थिओं के साथ खुली चर्चा होनी चाहिए और उनकीजिज्ञासा का समाधान होना चाहिएहमारे विश्व-विद्यालय के अध्यक्ष से सुनी कुछ बातें यहाँ रखना चाहता हूँ : "मेंकक्षा  से  तक एक ऐसे स्कूल में पढ़ा जिस में कक्षा खुले में लगती थीअध्यापक अपने साथ एक छड़ी लाते थे -विद्यार्थिओं को मरने के लिए नहीं - परन्तु आस पास घूम रहे बंदरों को भगाने के लिएइंफ्रास्ट्रक्चर शानदार नहींथा परन्तु अध्यापक शानदार थेकक्षा में २०-२५ विद्यार्थी होते थेविद्यार्थी खूब प्रश्न पूछते थे तथा उनको प्रश्नपूछने के लिए प्रेरित किया जाता था."   बेहतरीन शिक्षा की उस नीव के  कारण  ही श्री सुनील शर्मा आज इतनीअलोकिक बौद्धिक प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं.  विद्यार्थिओं की जिज्ञासा शक्ति  सृजनशीलता का विकास हीशुरूआती शिक्षा का मकसद होता है.
भारत के मशहूर वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर माशेलकर बहुत गरीबी में पले थेवे एक साधारण सी सरकारी स्कुल में पढ़ते थे.वहां संसाधन नहीं थेपरन्तु शिक्षक असाधारण थेवे शिक्षक उनके साथ वैज्ञानिक आविष्कारों के बारे में जम करचर्चा करते थेउस मजबूत नीव के करण प्रोफ़ेसर माशेलकर भारत के अग्रणी वैज्ञानिक बन गएएक बार उन्होंनेअपने शिक्षक से आगे के बारे में पूछा था की वे क्या करेंशिक्षक उनको धुप में ले गए और एक उत्तल लेंस से प्रकाशकी किरणों को एक कागज़ पर डालावह कागज़ जलने लगाशिक्षक ने बताय की अगर पूरी प्रतिभा किसी एक क्षेत्रमें लगा दोगे तो सफल हो जावोगेउनका समझने का तरीका हमेशा वैज्ञानिक होता था.
आज की चर्चा में हमने निम्न बिन्दुओं पर चर्चा की है - आप को ठीक लगे तो आप भी इन को बढ़ाने में योगदान देसकते हैं :  -
स्कूलों को अपने शहर के  सामाजिक उद्यमी (सोशल एन्त्रेप्रेंयूर्स)सृजनशील व्यक्ति सकारात्मक सोच केलोगों को अपने विद्यार्थिओं को प्रोत्साहित करने के लिए बुलाना चाहिए तथा उनसे विद्यार्थिओं का संवाद करवानाचाहिए.
शिक्षण व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमे विद्यार्थीओ को प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया जाये.
स्कूलों के पाठ्यक्रम में कुछ कटौती होनी चाहिएपरन्तु गुणात्मक सुधार होना चाहिए.
स्कूलों के पाठ्यक्रम में आस पास के नवाचार  श्रेष्ठ व्यवस्थाओं पर चर्चा होनी चाहिए.
स्कूलों में जो भी पढ़ाया जाये वह ऐसा हो जो  सकारात्मक सोच  कुछ नया करने के सपने दे सके

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