बच्चों को कल्पना लोक में ले जाइए
(नाटक और फिल्मों के द्वारा)
बच्चों को कल्पना लोक में जाना अच्छा लगता है. अगर हम नहीं चाहेंगे तो भी वे कल्पना लोक में जाएंगे. बेहतर तोयह होगा की हम उनको एक बेहतरीन भारत की कल्पना करने के मौका देवें और उनको एक ऐसे कल्पना लोक में लेजाएँ जिससे उनको बेहतरीन कार्य करने की प्रेरणा मिले. बच्चे अगर कल्पनायें नहीं देखेंगे तो उनका विकास भी रुकजाएगा. बच्चों को एक बेहतरीन दुनिया और एक बेहतरीन समाज का चित्रण कर के दीजिये, फिर देखिये वे आपकोभी उस समाज को बनाने के लिए झकझोर दीजिये. फिर उनको जहाँ भी कोई गलत काम नजर आएगा, वे उसकाविरोध करेंगे. बच्चों का जिद हम सभी जानते हैं. लेकिन जब आप बच्चों को कल्पना करने के लिए एक बेहतरीनदुनिया का चित्रण कर देते हैं तो फिर देखिये, वे उस दुनिया को बनाने के लिए भी जिद कर लेते हैं और कदम कदमपर हम सब को सुधरने के लिए मजबूर कर देते हैं. आप सब देख सकते हैं की दुनिया की सबसे बड़ी कम्प्नानियों मेंसे एक डिज्नी लैंड पूरी तरह से बच्चों को कल्पना लोक में ले जाने की परिकल्पना पर टिकी है.
नाटक जो बच्चों को एक बेहतर कल के लिए तैयार करेंगे
बच्चों को नाटक दिखाईये और उनको नाटक में भाग लेने का मौका दीजिये. जब बच्चे नाटक में भाग लेंगे तो वेउससे सम्बंधित साड़ी कहानी और इतिहास को सीख जाएंगे. साल में कम से कम ४-५ नाटक तो जरूर आयोजितकीजिये या नाटकों में भाग लीजिये. ऐसा करने से बच्चों के बहुमुखी व्यक्तित्व का विकास होगा. मैं दो स्कुओं में पढ़ाहूँ - विद्यानिकेतन और जैन स्कुल. जैन स्कुल में नाटक और इस प्रकार के कार्यक्रम नहीं होते थे अतः मुझे उनमेभाग लेने और अपने विकास का मौका नहीं मिला और इसका अफ़सोस भी होता है. विद्यानिकेतन स्कुल में मैंनेडरते डरते कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया और उसका मुझे फायदा मिले. जब मैंने महावीर स्वामी के नाटकमें भाग लिया तो उनसे सम्बंधित सारी जानकारी मेरी समझ में आ गयी. मेरे साथियों ने अलग अलग नाटकों मेंभाग लिया और उसके किरदार को अपने जीवन में उतरने का प्रयास किया. काश ऐसा हो की हर शहर में नाटक औरकथा की परम्पराओं को फिर से पुनर्जीवित किया जाए और हर विद्यार्थी को इनमे भाग लेने के लिए प्रशिक्षण,प्रोत्साहन, और सहायता मिले तो कितना अच्छा हो. इन कार्यों के लिए अध्यापकों को अतिरिक्त मेहनत करनीपड़ती है और विशेष प्रशिक्षण भी देना पड़ता है अतः उनको इस हेतु प्रेरित करने की जरुरत है. जरुरत है की हर स्कुलऔर कॉलेज इस हेतु प्रयास शुरू करे
बच्चों के लिए नाटक और फिल्मे बनाने को प्रोत्साहन दीजिये
२० व् २१ दिसंबर को बीकानेर में एक फिल्म फेस्टिवल का आयोजन होने वाला है. इसमें शार्ट फिल्म प्रस्तुत कीजायेगी. एक शिक्षक के रूप में मैं फिल्मों को बेहतरीन शिक्षण माध्यम के रूप में देखता हूँ. फ़िल्में बच्चों, अधेड़ों औरबुजुर्गों सबको सिखाती है. फ़िल्में इतने आराम से सिखाती है की सब कुछ हमारे दिलो-दिमाग में समां जाता है. आजहम जिस प्रकार से जी रहे हैं वो सब कुछ फिल्मों के कारण है. फ़िल्में हमारी आदतें बदल देती है, जीवन शैली बदलदेती है, सोच और नजरिए बदल देती है. बच्चों पर फिल्मों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. हम चाहे या न चाहे बच्चेतो फिल्मों के दीवाने होते है और फिल्मे देख ही लेते है. कई ऐसी फ़िल्में हैं जो बच्चों को ध्यान में रख कर ही बनायींगयी हैं. ऐसी फ़िल्में छोटे बच्चे बड़े ही चाव से देखते हैं.
हाल के वर्षों में कई ऐसी फ़िल्में आई हैं जो बच्चों के लिए बेहतरीन फिल्मे हैं. ऐसी फ़िल्में दिखने ही मकसद नहींहोना चाहिए. इन फिल्मों के बाद विद्यार्थियों के बीच समूह चर्चा भी करवाई जानी चाहिए. जैसे की फिल्म लगान,चक दे इंडिया, हनुमान, आदि फिल्म दिखने के बाद उन पर चर्चा भी करवाएं. इस चर्चा से विद्यार्थियों कीजिज्ञासाएँ भी दूर होगीं और उनकी अभिव्यक्ति की कला भी मुखर होगी. मैं नाटकों में भागीदारी को फिल्मों सेज्यादा जरुरी मानता हूँ. परन्तु आजकल बच्चे फिल्मों के दीवाने होते हैं. हर स्कुल और कॉलेज का यह दायित्वबनता है की एक ऐसा माहोल बनाये जो की बच्चों को यह भी शिक्षा दे की कैसी फिल्मे देखनी और उन फिल्मों परचर्चा भी कैसे करनी है. स्वस्थ समाज की नीव तो यहीं से रखी जाती है.
इस लेख के द्वारा में आप सभी लोगों से अनुरोध करूँगा की बच्चों को ध्यान में रख कर नाटक, फिल्म, औरकहानियां लिखना शुरू करें और इस क्षेत्र को प्रोत्साहन देवें. अगर आप इस बात को नजर अंदाज करेंगे और येसोचेंगे की बच्चों को फिल्मों की जानकारी देना स्कुल या कॉलेज का काम नहीं है तो फिर आप अपनी जिम्मेदारीनहीं निभा रहे हैं. आज हम देख ही रहें हैं की हमारे बच्चे अश्लील और हिंसक फिल्मे देख कर बर्बाद हो रहे हैं और येही बच्चे (जो इस प्रकार की फिल्मे देख रहें हैं) आने वाले समय में समाज के लिए कलंक बन जाएंगे. अतः पहल तोकरनी ही पड़ेगी.
सावधानियां :
बच्चों के बीच होने वाली आज कल की फिल्मों और संस्कृति सम्बन्धी चर्चा को गोर से सुने और उनका मार्गदर्शनकरें. इन मुद्दों पर आप स्कुल और कॉलेज में चर्चा आयोजित करवाएं जिससे बच्चों में इन मुद्दों पर सकारत्मकपक्ष रखने का सहस जूता सकें. बच्चों को हिंसा वाली फिल्मों से दूर रखें व् उनको वयस्कों की फ़िल्में ने दिखाएँ.उनको बेहतरीन फिल्मों के बारे में जानकारी देवें और वे फ़िल्में देखने में सहायता देवें.
बच्चो को सकारात्मक सोच प्रदान करें और उनसे खुल कर चर्चा करें और संस्कार बोधक फिल्मे दिखाएँ
बच्चों को दिखाने से पहले फिल्मों पर बाल मनोवैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया जान लेवें.
बच्चों को अश्लील वेबसाइट और इस प्रकार के घिनौना काम करने वाले लोगों से दूर रखें
बच्चों के सामने दुनिया का घिनौना चेहरा प्रस्तुत न कर सुनहरे भविष्य के लिए उनको तैयार करें.
आईये हम सब मिल कर एक नयी शुरुआत करें और सकारात्मक पहलु को बच्चों के सामने रखेंगे जिससे वे भी हमारेसपने साकार करने के लिए सोचें और एक बेहतर कल की तयारी करें.
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